Friday, 28 August 2020

Bharamri paranayam( भ्रामरी प्राणायाम।)

 भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है। भौरा इस अभ्यास को भ्रामरी  इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौरे के गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न की जाती है।




विधि

ध्यान के किसी सुविधाजनक आसन में बैठ जाए जैसे (पद्मासन, अर्ध  पद्मासन, सुखासन, सिद्धियोंनि, , सिद्धासन  ा मेरूदण्ड   सीधा रहे  दोनों हाथ घुटने पर चिन मुद्रा या फिर जान मुद्रा में रखे ा  अॉखे बंद कर मन को स्थिर करे  पूरे अभ्यास के दौरान होने को हल्के से बंद करे देते की पंक्तियॉ थोडा से अलग रहना चाहिए , दॉतो को दबा कर नही रखना है ,चेहरे पर किसी भी प्रकार की तानव ना रहे ा 

1.हाथों को उठाकर कोहनी को मोड ले और हाथों को कानों के निकट लाए तर्जनी या मध्यमा उंगलियों से कानों को बंद कर ले। उंगलियों को बिना अंदर घुस्साए कानों के पलों को दबाया जा सकता है। फिर नासिका से श्वास लें और भौरे की गुंजन की तरह गहरी और मंद ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियंत्रण ढंग से धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें , श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर ,  अखंड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मधुर हो की  कपाल के अग्रभाग में उसकी प्रतिध्वनि गूंजने लगी।


अपने ध्यान को सिर के बीचो-बीच ले जाए, जहां आचा चक्र स्थित है और शरीर को एकदम स्थिर रखें। नासिका से श्वास लें और भौरे की गुंजन की तरह गहरी और मंद ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियंत्रण ढंग से धीरे-धीरे श्वास छोड़े।श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर अखंड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मधुर हो कि कपाल के अग्रभाग में उसकी प्रतिध्वनि गुजने लगे। यह एक चक्र हुआ  ा सवाल को पूरी तरह छोडने के  बाद फिर से श्वास भरे और पुनं  करे ं।


अवधि

सामान्य रूप से 5 से 10 चक्र तक पर्याप्त है। धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 10 से 15 मिनट तक अभ्यास करें। बहुत अधिक मानसिक तनाव चिंता होने पर इसे उपचार के रूप में 30 मिनट तक भी किया जा सकता है।

अभ्यास का समय

अभ्यास के लिए सबसे अच्छा समय देर रात्रि आप उषाकाल है क्योंकि उस समय वातावरण  में बता शांति बनी रहती है और मानसिक तानव  से मुक्ति के लिए भ्रामरी  अभ्यास किया जाता है

सीमाए

भ्रामरी  प्राणायाम लेट कर कभी नहीं करना चाहिए जिन्हें कान का संक्रम हो उन्हें संक्रम से मुक्त होने के बाद ही भ्रामरी  करना चाहिए।

लाभ

भ्रामरी परेशानी और मस्तिष्क के तनाव से मुक्ति दिलाता है जिससे क्रोध, चिंता और अनिद्रा भी दूर होती है और रक्तचाप में कमी आती है। यह शरीर के ऊतकों को शीघ्र स्वस्थ बनाता है। अतः शल्यक्रिया के पश्चात इस प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यह वाणी को सुधार का सशक्त बनाता है और गले के रोगों को दूर करता है।


















English translation........       



Bhramari is related to Bhramar which means.  Bhora .This practice is called bhramari because it produces a sound similar to the  bhore.





Method


Sit in a comfortable posture of meditation such as (Padmasana, Ardha Padmasana, Sukhasana, Siddhini, Siddhasana's backbone should remain straight, both hands should be kept in chin mudra or jana mudra, close the eyes and stabilize the mind during the whole exercise.  Close it lightly so that the rows should remain slightly apart, do not press and keep the dust, there is no tension on the face.



1. Take the hands and take the elbow  to t close the ears from the forefils or the middle-fingers brought close to the hands. The fingers can be pressed without intested ears.Then breathing with the Nasika and generating a deep and dim sound like a bribery, leave the breath slowly, while leaving breathing, the sound of Gunjan should be sweet, monolithic. Sound is so sweet that its resonance resonates in the foreground of the cranial.

Take your attention in the center of the head, where the achaya chakra is located and keep the body very stable.  Inhale from the nose and exhale slowly in a controlled manner, making a deep and dull sound like the hum of the bhora.When exhaling, the sound of hum should be melodious.  The sound was so sweet that the resonance of the skull began to echo.  It was a cycle, after leaving the breathing completely, breathe again and do it again.


Period


5 to 10 cycles in general is sufficient.  Practice for 10 to 15 minutes while gradually increasing.  It can also be done for 30 minutes as a treatment if there is too much mental stress anxiety.



Practice of time

The best time for practice is late in the night, because during that time, peace prevails in the environment, and for the relief of mental tension, a misleading practice is done.



Precaution 

Bhramari Pranayam should never be done lying down; those who have ear infection should be confused only after they are free from infection.
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Benefit



Relieves delusional discomfort and brain tension, which also eliminates anger, anxiety and insomnia and reduces blood pressure.  It makes the body tissues healthy quickly.  Therefore, this pranayama should be practiced after surgery.  It empowers speech to improve and cures diseases of the throat.









Saturday, 8 August 2020

भस्त्रिका प्राणायाम लाभ(Bhastrika parnayama benefit)

   भस्त्रिका प्राणायाम  का अर्थ है' धौकनी 'इसमें लोहार की धौकनी की तरह फेफड़े में बलपूर्वक वायु को भीतर बाहर किया जाता है। धौकनी अग्नि में वायु प्रवाह को बढ़ा कर अधिक गर्मी पैदा करती है। उसी प्रकार भस्त्रिका प्राणायाम शरीर में वायु प्रवाह में वृद्धि कर भौतिक व  सुक्ष्म  दोनों स्तरों पर आंतरिक ताप बढ़ा देती है। इस शारीरिक व मानसिक शांति प्राप्त होती है।


भस्त्रिका को तीन गति से किया जाता है

  मंद गति -     मंद गति से उन साधक को करना चाहिए जिसने अभी योगा करना आरंभ किया है या वह व्यक्ति जो 40 से 50 से ऊपर हो क्योंकि इन लोगों की फेफड़ों की क्षमता कम   होती है इसलिए धीरे-धीरे मन गति से भस्त्रिका का आरंभ करना चाहिए। एक चरण 10 बार होता है। एक चरण से धीरे-धीरे बढ़ाइए जल्दी नहीं करना चाहिए।


मध्यम व उच्च गति  

मध्य व उच्च गति से कोई भी व्यक्ति कर सकता है पर शर्त ेकिसी तरह की बीमारी नां हो

अभ्यास विधि

1. बॉए व दॉए नासिका से

किसी भी आसन में बैठ जाएं। (पद्मासन सिद्धि, योनि आसन, सिद्धासन अर्ध पद्मासन) दोनों हाथों को चिन मुद्रा में घुटने पर रखें।मेरुदंड बिल्कुल सीधा रहे कंधे झुके नहीं रहना चाहिए। नासागर   मुद्रा हाथ से बनाए और दाहिना नासिकाछिद्र को बंद करें।


बाएं नासिका से 10 बार श्वास लें और छोड़ें।फिर बाएं नासिका को बंद कर दाएं नासिका से 10 बार श्वास लें और छोड़ें यह एक चरण हुआ। इसके बाद दोनों नासिका को बंद कर अंतर कुंभक करें।।


2. दोनो नासिका से 

किसी भी आसन में बैठ जाए। हाथों को चिन मुद्रा बनाए और घुटनों पर रखें। मेरुदंड सीधा रखें और दोनों नासिका से श्वास भरें और स्वास्थ छोड़ें। यह तेज गति से स्वास को भरना है और सॉस को छोड़ना है। इसे 10 बार करें। यह एक चरण हुआ।


3.विकल्प नासिका( दोनों नासिका से पर बारी-बारी)

किसी भी आसन में बैठ जाए दाएं हाथ से ना सागर मुद्रा बनाए और दाईं नासिका को बंद करें। बाएं नासिका से 20 बार तेज गति से श्वास भरें और तेज गति से स्वास् छोड़ें ज्यादा बल ना लगाए 21वीं बार में स्वास् भरेंगे और अंतः कुंभक लगाएंगे। दॉए नासिका से  करना है। दोनों नासिका से करने पर  एक चरण हुआ। इसे पांच चरण तक करने लेकर जाएं।

सावधानी

उच्च रक्तचाप ,चक्कर आना, मिर्गी, दौरा आना, हिर्दय रोग, हर्निया अल्सर ,नाक से खून आना इन रोगियों से ग्रस्त लोगों को भस्त्रिका नहीं करना चाहिए ा

 जिन्हें फेफड़े की बीमारी जैसे दमा ब्रोंकाइटिस से पीड़ित रोगियों के लिए लाभकारी है, लेकिन वह किसी योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें।

लाभ

भस्त्रिका प्राणायाम करने से शरीर में जमे विषैल पदारथ  को जला देते हैं। फेफड़े के वायु कोष में ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड की आवाजाही होती है। भस्त्रिका करने से फेफड़े में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा जाते और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से विषैल गैस निकलने से रक्त में शुद्धि आती है। रक्त में ऑक्सीजन ज्यादा जाता है जो कि रक्त पूरे शरीर में जाता जिससे बीमारियां नहीं होती है। बस्ती का करने से हमें हृदय की समस्या नहीं होगी क्योंकि हदय  को अाराम पूर्वक अपना काम करेगा। उसे धक्का लगा कर काम करने की जरूरत नहीं होगी। भस करने से पेट की मांसपेशियां मजबूत होते हैं

पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए भस्त्रिका अच्छा है। दमा व फेफडे के अन्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उत्तम पाणायाम है।


नोट

अधिकतर लोग स्वसन ऊपरी करते हैं जिससे फेफड़े के अंदर वायु कोष तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है। जिस कारण रक्त में अशुधियॉ रह जाती है। शरीर के मुकाबले मस्तिष्क को 20% ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। जब ऑक्सीजन में कमी व कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है तो तनाव ,डिप्रेशन  उदासीन ,चिड़चिड़ापन जैसी बीमारियां उत्पन्न होने लगती है। दमा ब्रोंकाइटिस रोग भी होने लगते हैं।

















English translation....................... 



Bhastrika result means 'Dhokani', like a blacksmith's blower, the air is forced out into the lungs.The blower produces more heat by increasing the air flow in the fire.  Similarly, Bhastrika Pranayama increases the internal heat on both physical and internal levels by increasing the air flow in the body.This physical and mental peace is attained.


Bhastrika is performed at three speeds.


Slow Speed  - Slower should be done to those seekers who have just started doing yoga or a person who is above 40 to 50 as these people have low lung capacity.Therefore, Bhastrika should be started slowly in the mind.  A phase occurs 10 times.  Accelerate slowly from one phase to the next.Therefore, Bhastrika should be started slowly in the mind.  



Medium and high speed 

Any person can do it at mid and high speed.But the condition is not any kind of disease



Practice method

1. Left and Right  nostal

Sit in any posture.  (Padmasana Siddhi, Vagina Asana, Siddhasana Ardha Padmasana) Place both hands on the knee in Chin mudra.

The backbone should not be bent at all.Make nasal posture by hand and close the right nasal cavity

Inhale and release 10 times from the left nostril.Then close the left nostril.  Inhale and release 10 times from the right nose, this is a step  .After this, close both the nostrils and do the internal hold breath.


2. Both Nastal

Sit in any posture.  Keep your hands in Chin pose and keep them on your knees.  Keep the spine straight and inhale with both nostrils and release your breath.  It is to fill the breath at a fast pace and leave the breath.  Do this 10 times.  This one phase happened.


3.Alternate nasal (alternating from both nasal.)

Sit in any posture, make no ocean posture with right hand and close right nostril.  Breath at 20 times faster than the left nostril and release breath at a faster rate. Do not exert too much force, in the 21st time, you will fill your breath and apply the inner Kumbhak.

Have to do with the nose.  There was a phase when both were done with the nose.  Take it to five steps.

Precaution 

High blood pressure, dizziness, epilepsy, seizures, heart disease, hernia ulcers, epistaxis should not be used on those who suffer from these patients.

 which is beneficial for patients suffering from lung disease such as bronchitis, but any yoga.  Do it under the guidance of the teacher.


Benefit 

By performing Bhastrika Pranayama, they burn the poisonous substance stored in the body.  There is movement of oxygen and carbon dioxide in the lungs.  By doing bhastrika, the amount of oxygen in the lungs goes up and the amount of carbon dioxide is less.

By doing bhastrika, the amount of carbon dioxide gas comes out in the body.  Oxygen goes higher.  The more oxygen is in the body, the more diseases remain in our body.

Bhastrika is good for strengthening the abdominal muscles.  Best for the people suffering from Best for people suffering from asthma and other lung diseases .


Note

Most people exhale breathing due to which oxygen does not reach the air sac inside the lungs.  Due to which there are impurities in the blood.  The brain needs 20% more oxygen than the body.  When there is a decrease in oxygen and increase in carbon dioxide, diseases like stress, depression, depression, irritability start to occur.  Asthma bronchitis disease also starts.




















Wednesday, 8 July 2020

ध्यान करने के 12 तरीके(12 Ways to meditate)(

1.स्थान 

जो स्थान चयन किया है वह साफ सुथरा हो। उस स्थान में ऐसा वस्तुएं ना हो जो ध्यान को भटकाए उत्तर और पूर्व की ओर मुख करके ध्यान लगाना चाहता फायदा होता है।

2.समय
ध्यान के लिए एक निश्चित समय का चुनाव करें। ब्रह्म मुहूर्त 4:00 से 6:00 बजे का समय सबसे अच्छा होता है। उस समय मन शांत रहता है। दिन भर के गतिविधि के तुलना में लेकिन आजकल के बिजी शेड्यूल होने के कारण आप अपने लिए 24 घंटे मे से 15 मिनट निकाले अपने लिए ताकि मानसिक रूप से शांति मिले
https://youtu.be/L0R8-19AgtI

3.आदत

ध्यान के लिए बैठने की आदत लगाए चाहे ध्यान लगे।या ना लगे अवचेतन मन को शांत करने के लिए मन को एक जगह केंद्रित करें। शुरुआत में 15 से 20 मिनट तक बैठने स आरंभ करेे फिर धीरे-धीरे 30 से 1 घंटे तक ले जाएं। जब ध्यान में बैठने लगेगे तो मन स्वतः ही ध्यान में लगने लग जाएगा।

4.बैठने कि मुद्गा

ध्यान में बैठने के लिए मेरुदंड का सीधा रखें पर तनाव ना दें।आरंभिक साधक दीवार के सहारा लेकर भी बैठ सकते हैं। लेकिन धीरे-धीरे कोशिश करें कि मेरूदण्ड  सीधे करके बैठे बिना किसी सहारे के ा  आरंभिक  साधक को बैठने मे तकलीफ हो सकती है ा
सुखासन ,पद्मासन ,अर्ध पद्मासन में बैठ सकते हैं जिसमें बिना हिले डुले 15 से 20 मिनट या जब तक आप ध्यान करें, बैठे सके उसमें हिलना डुलना नहीं है। अब धीरे-धीरे ध्यान को एकाग्रता में ले जाए। जब हम ध्यान करते हैं उस समय पाचन क्रिया, मस्तिष्क तरंगे एवं श्वसन प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।


5.स्वास्

जानबूझकर विश्राम करने का प्रयत्न करें और अपने स्वास् को लयबधद  करें। कुछ गहरे उदर स्वास  से आरंभ करें जिससे मस्तिष्क तक ऑक्सीजन पहुंच सके , 3 सेकंड तक स्वास भरे और 3 सेकंड श्वास  छोड़ें , ऐसे 15-20 बार करे इस विधि से प्राणी स्थिर और मन शांत होता है।

6.मन
प्रारंभ करने से पहले मन को एक निश्चित समय के लिए शांत रहने के आदेश दे भूतकाल, भविष्य काल ,वर्तमान काल भूल जाएं।कुछ समय के लिए मन को पहलाद और धैर्य रखें।

7.एकाग्रता के लिए बिंदु का चुनाव!

मन को एक आधार के लिए एक  बिंदु की आवश्यक होती है क्योंकि वह अक्सर वर्तमान से हटकर भूतकाल या भविष्य में ही सोचता रहता है होते है 

8. एकाग्रता के लिए वस्तु चुनना।

ध्यान को करने के लिए  मंत्र का प्रयोग करे । उससे मन  और स्वास् एक  साथ सम्मिलित हो जाएगा ं। यदि आपका कोई व्यक्तिगत मंत्र नहीं है तो ओम का उच्चारण , महामृत्यु जाप का उच्चारण कर सकते हैं। वह लोग जो व्यक्तिगत मूर्ति को ज्यादा मानते हैं वह मूर्ति पर ध्यान केंद्रित करे  अगर आलस्य आए तो मंत्रों का उच्चारण उच्च स्वर में भी किया जा सकता है। मंत्रों को कभी ना बदले अतः स्वास् और मंत्रों से एकाग्रता का केंद्र बनता है।

https://youtu.be/L0R8-19AgtI
सॉफ्ट सॉन्ग पर भी ध्यान लगा सकते हैं, लेकिन गाने पर पूरी तरह से फोकस रखिए/

https://youtu.be/sdARucC-DLQ



9. मन को समय देना
जब ध्यान में बैठेंगे तो मन इधर-उधर भटके गा। उसे भटकने दे ा बस ध्यान से देखे कि मन  कहां जा रहा है जब विचार ध्यान लगाएगे तो विचार शुन्य होता  जाएगा ा  मन पर नियंत्रण मत करे  वरना मन आपको ध्यान कभी नहीं करने देगा। धीरे-धीरे मन पर नियंत्रण करने की कोशिश करें। जब मंत्र या गाने पर ध्यान लगाने धीरे धीरे मन नियंत्रण होने लगेगा

10. मन को अलग करके देखना
असहयोग की तरह एक एक करके मन का अवलोकन करें जैसे कि कोई चलचित्र देख रहे हो। मैं मन नहीं हूं। मैं इसका केवल दर्शक हूं, मन धीरे-धीरे धीमा पड़ जाएगा।

11.पावन विचार
नियमित ध्यान करने से केंद्रीकरण बनता है ऊर्जा का स्तर का बहाव वैसा ही रहता है जैसे कि एक बर्तन से दूसरे बर्तन में तेल डालने का बहाव होता है। जाप  पावन विचार की ओर लेकर जाता है और ध्वनि की तरंगे विचार की तरंगों के साथ मिल जाती है।तब हम अपने internal अवस्था में चले जाते हैं, मानसिक स्तर शुन्य  हो जाता है और उस समय आनंद का महसूस करते हैं।

12.समाधि
समाधि में हम अपने आप को भूल जाते हैं। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है और हमे इस दुनियादारी से  छुटकारा मिल जाता है ज्ञानेंद्रियों पर पूरी तरह से नियंत्रण हो जाता है।












 

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English Translation................ 
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1.Place

The location you have selected should be clean and tidy.  There should not be such things in that place, which wants to divert attention and focus on facing north and east.

2. Time

Choose a specific time for meditation.  The time of Brahma Muhurta from 4:00 to 6:00 is the best.  At that time the mind remains calm.  Compared to the day-long activity, but due to the busy schedule nowadays, you should take 15 minutes out of 24 hours for yourself so that you get mental peace.


3. Habite

Use the habit of sitting for meditation, regardless of meditation.Or do not start to focus the mind in a place to calm the subconscious mind.  Initially start sitting for 15 to 20 minutes, then slowly move it for 30 to 1 hour.  When you start sitting in meditation, the mind will automatically start meditating.

4.sitting 's posture

To sit in meditation, keep the spine straight but do not strain.Early seekers can also sit with support from the wall.  But try slowly that the initial seeker may have trouble sitting without any support by sitting directly on the spinal cord.
You can sit in Sukhasana, Padmasana, Ardha Padmasana, in which you do not move in it for 15 to 20 minutes without moving or as long as you meditate.  Now slowly move the meditation into concentration.  When we meditate, digestion, brain waves and respiratory process slow down.

https://youtu.be/L0R8-19AgtI
5.Breathing

Try to relax intentionally and give your breath a break.  Start with some deep abdominal breathing so that oxygen can reach the brain, inhale for 3 seconds and exhale for 3 seconds, do this 15-20 times.By this method, the creature is stable and the mind is calm.

6. Mind

Before starting, order the mind to remain calm for a certain time, forget past, future tense, present tense.Keep the mind primed and patient for some time.


7.Selection of point for concentration!

The mind needs a point for a foundation because it often thinks away from the present and thinks only in the past or future.


8.Choosing an object for concentration.

Use the mantra to do meditation.  It will join mind and breath together.  If you do not have a personal mantra, you can chant Om, Mahamrityu Jap.  People who believe in personal idol more should focus on idol   I f there is laziness, mantras can also be pronounced in high tone.  Never change mantras, therefore. Breath and mantras create a center of concentration.
https://youtu.be/L0R8-19AgtI

You can also focus on soft songs, but keep a complete focus on the song.
https://youtu.be/sdARucC-DLQ

9.To give time your mind

When you sit in meditation, the mind wanders here and there.  Let him wander, just watch carefully where the mind is going. When the thoughts are meditated, the thoughts will become zero or don't control the mind, otherwise the mind will never let you meditate.  Try to control the mind slowly.  When you focus on a mantra or a song, mind control will gradually begin.
10.To separate the mind.

Observe the mind one by one like non-cooperation, as if watching a movie.  I am not mind  I am the only spectator of this, the mind will slowly slow down.


11.Holy thoughts

Regular meditation creates centralization.
.The flow of energy level remains the same as the flow of oil from one vessel to another.  Chanting leads to thought and the waves of sound merge with the waves of thought.Then we go into our internal state, the mental level becomes zero and at that time we feel blissful.

12.samadhi

In samadhi we forget ourselves.  The soul gets in union with God and we get rid of this worldliness.The sense organs are completely in control.








Wednesday, 17 June 2020

Kapalbhati benefit

कपालभाती एक क्रिया है। इससे शरीर की सफाई होती है। पाणायाम आरंभ करने से पहले कपालभाति करना चाहिए ताकि शरीर की सारी विषैले तत्व बाहर निकल जाए।कपालभाति करने से सूर्य नाड़ी सक्रिय होते हैं कपालभाति षटकरम का हिस्सा है। इसे करने के बाद जब पाणायाम कपालभाति षटकरम का हिस्सा है। इसे करने के बाद जब पाणायाम करते हैं तो पाणायाम का असर ज्यादा अच्छी तरह से होता है।कपालभाति षटकरम का हिस्सा है। इसे करने के बाद जब पाणायाम करते हैं तो पाणायाम का असर ज्यादा अच्छी तरह से होता है कपालभाति षटकरम का हिस्सा है। इसे करने के बाद जब पाणायाम करते हैं तो पाणायाम का असर ज्यादा अच्छी तरह से होता है।करते हैं तो पाणायाम का असर ज्यादा अच्छी तरह से होता है।

सामान्य श्वसन करते समय  स्वास्थ्य लेना सरल होता है लेकिन स्वास्थ्य को छोड़ने में थोड़ा फोर्स लगता है।लेकिन जब प्रणाम करते हैं तो स्वास लेना फोर्स के साथ होता है। श्वास छोड़ना सामान्य  होता है।

विधि

ध्यान के किसी आरामदायक आसन में बैठ जाएं जैसे (पद्मासन ,सिद्धासन ,अरधपदमासन, )
सिर और मेरूदण्ड को सीधा रखते हुए हाथों को घुटनेा पर चिन या जान  मुद्रा में रखें। आंखें बंद कर ले। पूरे शरीर को शिथिल करें। उदर को फैलाते हुए दोनों नासिका छिद्रों से गहरी श्वास लें और उदर की पेशियों को बलपूर्वक संकुचित करते हुए स्वास्थ्य छोड़ें।किंतु अधिक जोर ना लगाएं। सांस ले सामान्य रूप से। ऐसा ही करे
30: 40 :50 का 3 राउंड करें।

श्वसन : यह आवश्यक है कि इन विधियों में श्वसन उदर से हो वक्ष से नहीं।

सावाधानी यदि दर्द का अनुभव हो या चक्कर आने लगे तो अभ्यास बंद कर दे और थोड़ी देर शांत होकर बैठ जाए। जब यह संवेदना  समाप्त हो जाए। तब अधिक सजगता के साथ और कम जोर लगाकर अभ्यास पुनः आरंभ करें। यदि समस्या बनी रहती है तो किसी योग शिक्षक से परामर्श जरूर ले।


सीमाए :  हदय  रोग, उच्च रक्तचाप ,चक्कर आना, मिर्गी, दौरे पड़ना, हर्निया या गैस्ट्रिक अल्सर से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह अभ्यास वर्जित है। 

लाभ



कपालभाती इडा और पिगला नाड़ियों को शुद्ध करता है। यह मानसिक कार्यों के लिए मन को ऊर्जा प्रदान करता है। निद्रा को दूर भगाने और मन को ध्यान के अभ्यास के लिए तैयार करता है।  भस्त्रिका की तरह फेफड़े को स्वच्छ करने की क्षमता कपालभाती में भी है। इसलिए यह दमा वातस्फीति ,ब्रोंकाइटिस से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक उत्तम अभ्यास है। कुछ महीनों की सही तैयारी के बाद प्रसव के समय स्त्रियों के लिए यह प्रभावी अभ्यास हो सकता है।यह तंत्रिका तंत्र में संतुलन लाता है और उसे मजबूत बनाता है। साथ ही पाचन तंत्र के अंगों को पुष्ट बनाता है। अध्यात्मिक साधकों के लिए यह अभ्यास विचारों एवं सूक्ष्म दृश्यों को रोकता है।

















English translation.............................. 


Kapalbhati is a Kriya.  This cleanses the body.  Kapalabhati should be done before starting Panayam so that all the toxic elements of the body released.Performing Kapalbhati activates the Sun pulse Kapalbhati is a part of Shatkaram.  After doing this, when doing Panayam, the effect of Panayam is more well.

Taking health while doing normal respiration is simple but it takes a little force to leave health.But when we salute, the breath is with the force.  Breathing is normal.



METHOD

Sit in a comfortable posture of meditation such as (Padmasana, Siddhasana, Aradhapadamsana,)

Keeping the head and spinal cord straight, keep the hands in a chin or life posture at the knee.  Close your eyes.  Relax the whole body.  Breathe deeply through both nasal cavities while spreading the abdomen and release health by forcefully narrowing the abdominal muscles.But do not force too much.Breathe normally inhale

Do 3 rounds of 30: 40: 50.

Breathing:It is necessary that in these methods the respiration is from the abdomen and not from the thorax.



CoUTion : If you experience pain or feel dizzy, stop the practice and sit down for a while.  When this sensation ceases.  Then resume the exercise with more alertness and less emphasis.  If the problem persists, please consult a yoga teacher.

Limitations :This practice is prohibited for persons suffering from cardiovascular disease, high blood pressure, dizziness, epilepsy, seizures, hernia or gastric ulcer.

Benefit 

Kapalbhati purifies the Ida and Pigla channels.  It provides energy to the mind for mental tasks.  Removing sleep and prepares the mind to practice meditation.
Like Bhastrika, Kapalbhati also has the ability to cleanse the lungs.  Hence this asthma emphysema,Is a best practice for people suffering from bronchitis.  After a few months of proper preparation, it can be an effective practice for women at the time of delivery.It brings balance to the nervous system and makes it strong.  Also makes the organs of the digestive system athletic.For spiritual seekers, this practice prevents thoughts and subtle scene. 















Tuesday, 16 June 2020

Yoga benefits (योग के लाभ)

योग जीने की कला है और योगासन एक वैज्ञानिक पध्दति यही एक व्यायाम है जो हमारे आंतरिक शरीर पर प्रभाव डालता है।शरीर और मन का स्वस्थ रहना हमारे अंदर के अंगों हदय, फेफडे ,पाचन संस्थान ,ग्रंथियां, मस्तिष्क नाडीयों  कि स्वस्थ व सक्रिय रहने पर निर्भर करता है।यदि अंदर के अंग सक्रिय हैं और शरीर की प्रतिरोधक  शक्ति काम कर रही है। तो दवा से भी काम लिया जा सकता है। नहीं तो वह  भी विष छोड़ जाती है। रोगी को और कई नए रोगी दे जाती है।

शरीर के अंदर की शक्ति को जगाने का काम योगासन व अन्य योग क्रियाओं कर सकती हैं ।योगासन करते समय हम अपने शरीर को तोड़ते मरोडते हैं। शरीर को तानते और ढीला करते हैं जिससे हमारी रक्त नलिकाए साफ व शुद्ध होती है जिससे हृदय को सारे शरीर को शुद्ध रक्त पहुंचाने और विकार युक्त को वापस हृदय में लाने में सुविधा होती है।हृदय हर वक्त काम करता रहता है। उसे आराम करने का बिल्कुल भी समय नहीं मिलता है। 24 घंटे में 8000 लीटर रक्त शरीर में पंप करता है। वह उतने ही विकार युक्त  रक्त को वापस लेता है और उसे शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में भेजता है। शुद्ध होकर रक्त वापस हृदय में आता है। यह चक्र 15 सेकंड का  जब तक हम जीवित रहते हैं तब तक चलता है।
हम दिन भर काम करते हुए थक जाते हैं तो आराम करते हैं। रात को 6 से 8 घंटे सोते पर हदय और फेफडे तब भी काम करते रहते हैं, वह आपके अधीन नहीं है। आप उन्हें आराम करने के लिए कह भी नहीं सकते हैं।  हदय को भीआराम चाहिए और उसे आराम देने का केवल एक ही तरीका है कि रक्त नलिका को साफ रखा जाए।ताकि वे सुविधा पूर्वक सारे शरीर में रक्त संचालन कर सके तथा शरीर को दूषित रक्त फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेज सकें। साथ ही ,यह काम उसे धक्का लगा कर ना करना पड़े ,जहां शुद्ध रक्त जाएगा। वह अंग पुष्ट होंगे। सक्रिय होंगे, रोग मुक्त होंगे !परंतु आज हृदय रोग ही सबसे अधिक हो रहा है। हदय को धक्के लगाकर काम करना पड़ रहा है जिससे ना तो रक्त शुद्ध शरीर के हर अंग तक पहुंचते हैं और ना ही वहां से विकार निकल पाते हैं। इसका कारण है कि लोगो में रोग और तनाव बढ़ते जा रहे हैं।

योगासन व प्राणायाम से हमारी रक्त नलिका ए शुद्ध हो जाती है। फेफड़े खुल जाते हैं। मांसपेशियों में लचक आ जाती है जिससे उनके फैलने और सिकुड़ने कि शक्ति बढ़ जाती है, उनकी अधिक ऑक्सीजन ले पाने की क्षमता बढ़ जाती है और वह शरीर के विकार को जलाकर कार्बन डाइऑक्साइड गैस के रूप में बाहर कर पाते हैं।

फेफड़ों में 16 से 18 करोड़ छिद्र हैं जिनमें रक्त आकर भरता है। इसकी शुधि ऑक्सीजन से होती है। जितनी अधिक ऑक्सीजन हम ले पाएंगे व फेफड़ों के अंतिम छिद्रों तक जाएगी और उतना ही अधिक रक्त शुद्ध होगा। जितना अधिक रक्त शुद्ध होगा, विकार मुक्त होगा। उतनी अधिक उसकी दौड़ बढ़  जाएगी और हदय को उसे सारे शरीर में पहुंचाने में सुविधा होगी।

योगासन से हम अपने शरीर की सफाई करते हैं, उसे अनुशासित करते हैं। प्रतिदिन नियमित रूप से योगासन करने से शरीर के विकार मुक्ति के चारों मार्ग, नासिका, त्वचा लिंग और गुदा सक्रिय रहते हैं। विकार शरीर में रुकता नहीं, शरीर  स्वस्थ व शिथिल रहता है और मन शांत रहता है।

योगासनों से हम अपने पाचन संस्थान को स्वस्थ करते हैं। पाचन रस पूरी तरह से निकलते हैं जिससे भूख लगती है। क्लोम ग्रंथि  सक्रिय होती है। खाया हुआ भोजन पूरी तरह पचता है जिससे शरीर को आवश्यक शक्ति मिलती है और वह रोगों से अपने को बचाने में सक्षम रहता है।

योगासन ही एक ऐसा व्यायाम है जिससे रीढ़ की हड्डी में लचक पैदा की जा सकती है। दूसरे ऐसा कोई भी काम नहीं है जिससे मेरुदंड में लचक आ सके। आसनो में हम शरीर को आगे -पीछे ,दाएं -बाएं मोड़ते हैं, जिससे रीढ में लचक पैदा होती है जिससे शक्ति के केंद्र चक्र प्रभावित होते हैं। हमारा मेरुदंड 26 हड्डियों के जोड़ों से बना है।विज्ञान मेरुदंड को तीन भागों में विभाजित करता है। ऊपर का भाग जब गर्दन से जुड़ा है उसे सर्वाइकल रीजन कहते हैं। इसमें 7 हड्डी होते हैं। बीच का भाग जो पसलियो से जुड़ा होता है उस पर 12 हड्डी  होते हैं। डोर सील रीजन कहते हैं। नीचे के भाग को लंबा रीजन कहते इसमें 7 हड्डी होते हैं।

योगासनों से हमारा मस्तिष्क तथा संपूर्ण नारी मंडल शिथिल व सक्रिय होता है। योगासन धीरे-धीरे करने वाली क्रियाएं हैं। आंसनों में हम अपने शरीर को पूरी तरह चाहते व खींचते हैं और पूर्ण स्थिति तक जाते हैं।फिर शरीर को ढीला छोड़ते हैं, शवासन करते हैं। ऐसा करने से नाडिया तनावमुक्त और कार्यशील होती है। प्राणायाम से भी हमारी नाडिया शुद्ध व शांति होती है। मन स्थिर होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है।

जब शरीर स्वस्थ होगा, मन शांत होगा, तभी भीतर की शक्तियां जागेगी। चक्र खुलेंगे। मन एकाग्र होगा। जब मन एकाग्र होगा तो काम करने की शक्ति बढ़ जाएगी। काम करने में सफलता मिलेगी। समस्याओं के भागेंगे नहीं, उनका सामना करने की शक्ति आ जाएगी। व्यक्ति सकारात्मक सोचने विचारने लगेगा। कार्य शक्ति सही दिशा में बहने लगेगी। जीवन का मूल रूपांतरण हो जाएगा। जब काम करने की दिशा ही ठीक हो जाएगा और काम में सफलता मिलने लगेगी तो मन पर संसद से भर उठेगा। यदि यह प्रशंसा बनी रही तो आनंद का रूप ले लेगी। आनंद का दूसरा नाम है, परमात्मा है। आपकी आत्मा परमात्मा बन जाएगी। इसी का नाम योग है।आप जिस भी कार्यक्षेत्र में हो उसे कोई अंतर नहीं पड़ता। आप निरंतर प्रयास से योग की अवस्था में बने रह सकते हैं। आवश्यकता है इस संबंधित क्रियाओं को विश्वास श्रद्धा मनोयोग से करने की सही साधना है योग साधना।
































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English Translation 



Yoga is the art of living and yoga is a scientific method that is an exercise that affects our inner body.Staying healthy of body and mind depends on the healthy and active organs of our organs, lungs, digestive institutions, glands and brain.If the internal organs are active and the body's immune system is working.  So medicine can also be used.  Otherwise she also gives up poison.  Many more new disease  are given to the patient.

Yogasan and other yogic activities can be done to awaken the power inside the body.While doing yoga yoga, we break our body and die.  Tightens and loosens the body by which our blood vessels are clean and pure, which facilitates the heart to deliver pure blood to the whole body and bring the disorderly person back to the heart.heart has to work all the time.  In 24 hours, 8000 liters of blood is pumped into the body.  He withdraws the blood containing the same disorder and sends it to the lungs to be purified.  Blood comes back to the heart after being purified.  This 15 second cycle lasts for as long as you live.

If we are tired while working all day, then we relax. Heart and lungs still work for 6 to 8 hours at night, he is not under you.  You can't even ask them to rest.  Haday also needs rest and the only way to give him rest is to keep the blood vessel clean.So that they can conveniently conduct blood throughout the body and send contaminated blood to the body to be purified in the lungs.  Also, it does not have to be done by pushing it, where pure blood will go.  Those organs will be strengthened.  Will be active, will be disease free.But today heart disease is happening the most.  Haday has to work by pushing it so that neither the blood reaches every part of the pure body nor can there be any disorder.  The reason for this is that diseases and stress are increasing in people.

With Yogasan and Pranayama, our blood vessel A gets purified.  Lungs open.  Muscles become supple which increases their strength to stretch and shrink, increases their ability to take more oxygen and they burn out the body's disorder in the form of carbon dioxide gas.

There are 16 to 18 crore holes in the lungs in which blood comes and fills.  It is purified with oxygen.  The more oxygen we will be able to take and go to the last pores of the lungs and the more blood will be purified.  The more blood is purified, the more the disorder will be free.  The more his race will increase and Haday will be able to take him all over the body.

With Yogasan we clean our body, we discipline it.  By doing yoga yoga regularly every day, all four routes to rid the body of the disorder, nose, skin, penis and anus remain active.  The disorder does not stop in the body, the body remains healthy and relaxed and the mind remains calm.

With yogasanas we make our digestive institution healthy.  Digestive juices are completely excreted leading to hunger.  The clome gland is activated.  The food eaten is fully digested due to which the body gets the necessary strength and is able to protect itself from diseases.
Yogasana is one such exercise that can produce flexibility in the spine.  Secondly, there is no such thing that can bring flexibility in the spine.  In the posture, we bend the body forward - backward, right - left, causing flexibility in the back, which affects the center chakra of power.  Our spine is made up of 26 bone joints.Science divides the spine into three parts.  The upper part, which is connected to the neck, is called cervical region.  It consists of 7 bones.  The middle part which is attached to the ribs has 12 bones on it.  The door seal region says.  The bottom part is called long region and it has 7 bones.

With Yogasanan our brain and the entire feminine system are relaxed and active.  Yogasanas are slowly performing actions.  In tears, we want and pull our body completely and go to full position.Then leave the body loose, embalming.  By doing this, Nadia is relaxed and functioning.  Our nadia is also pure and peaceful with pranayama.  Mind is stable, confidence increases.

When the body is healthy, the mind is calm, then the inner powers will be awakened.  The cycle will open.  The mind will concentrate.  When the mind is concentrated, the power to work will increase.  Will get success in working.  Problems will not run away, power will come to face them.  The person will start thinking positively.  The work force will start flowing in the right direction.  The basic transformation of life will take place.  When the direction of working will be corrected and success in work will start, then the mind will be filled with Parliament.  If this praise remains, it will take the form of bliss.  Anand has another name, God.  Your soul will become divine.  This is called Yoga.Whatever field you are in, it does not matter.  You can remain in the state of yoga with continuous effort.  There is a need to practice this related activities with faith, devotion, manoga, and the right practice is yoga practice.






Wednesday, 10 June 2020

गुड़हल चाय (गरमी को करे दूर) Hibiscus tea( for Summer)

गुड़हल एक ऐसा फूल है जो हमारे आसपास ही पाए जाते हैं। पर हमे उसके लाभ के बारे मे नही पता होता है जैसे कि हम मार्केट से शरबत वगैरा खरीदते हैं, उसकी जगह पर हम गुड़हल की शरबत बना सकते हैं। पर  मैं आज आपको गुड़हल की चाय बनाना बताऊंगी  और इसके लाभ के बारे में भी गुड़हल के फूल ठंडी तासीर की होती है जो कि गर्मी के दिनों में प्रयोग करने के लिए बहुत अच्छा क्योंकि गर्मी  के दिन मे बॉडी का टेंपरेचर बहुत गर्म होता है। इसका प्रयोग करने  से शरीर के गरमाहट दूर होगी

गुलहड़ के फूल बहुत से रंगों में मिलते हैं जैसे लाल, सफेद ,गुलाबी लेकिन हमें लाल कलर के फूल को ही प्रयोग में लेकर आना है।

गुड़हल के फूल के चाय उनके लिए बहुत अच्छा है जिनके चेहरे पर  पिंपल वगैरह निकलते हैा क्योंकि उनकी बॉडी की तासीर गर्म होने के कारण ही उनके फेस पर पिंपल्स वगैरह ज्यादा निकलते हैं और गुड़हल  ठंडी तासीर का होता है ! पिंपल्स  को दूर करने  मदद करेगा! 



सामग्री

  • गुडहल.             1-3 पत्ते 
  • काली मिरच.       2-4 दाने
  • शहद
  • निंबु               

विधि

एक बर्तन में एक ग्लास पानी लीजिए। उसको गर्म करने के लिए रख दीजिए ! उसमे काली मिर्च को तोड़ कर डाल दीजिए। 5 मिनट की धीमी आंच पर उबाले।गैस को बंद करने के बाद उसमें गुड़हल का फूल डालिए और 5 मिनट तक ढककर रख दीजिये। अगर फूल ताजा है तो 5 मिनट में वह रेड कलर का हो जाएगा। अगर फूल सूखा है तो कम से कम 15 से 20 मिनट वैसे ही ढक कर रख रख दीजिए।अपने स्वाद  के लिए इसमें शहद और निंबू डाल सकते हैं, वरना ऐसे भी पी सकते हैं।

फूल के ऊपर पीले कलर की  बिंदु से होती है, उसे हटा दे ऊपर की डंडे को तोड़ दे ! नीचे से हके पत्ते हटा दें  !  

लाभ

High B. P
पीलिया
गर्मी  को दूर करे
चेहरे निखारे

सावधानी 

Low B. P,  
Conceive  
Kapha दोष
Pregnant 


इन रोगी को नहीं लेना चाहिए। बाकी सब ले सकते हैं। 

गुड़हल के चाय को 1 दिन में एक बार ही ले और 1 महीने तक लेने के बाद !बंद करें कम से कम 10 दिन तक ना ले, फिर उसके बाद दोबारा ले सकते हैं। इस चाय को गर्मी में ही ले !


















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English Translation 





Hibiscus  is a flower that is found around us but we do not know about its benefits.Just like we buy syrup from the market, we can make hibiscus syrup instead.  But today I will tell you how to make hibiscus tea and also about its benefits The flowers of hibiscus  are of cool effect which is very good to use in summer days because the temperature of the body is very hot during the summer.  Using it will relieve body heat

Hibiscus  flowers are available in many colors like red, white, pink But we have to use red colored flowers only.   Hibiscus tea is very good for those who have pimples etc. on their faces because their body temperature is warmer and the pimples on their face get more and the hibiscus  is colder!  Will help to remove pimples!

Ingredients 

  • Hibiscus  flower    1-3 leave
  • Black paper.    2-4 piece 
  • Honey
  • Lemon







Take a glass of water in a pot.  Put it to heat.Break pepper into it.  Boil on low heat for 5 minutes.After turning off the gas, add jaggery flowers to it and keep it covered for 5 minutes.  If the flower is fresh then it will be red in 5 minutes.  If the flower is dry, keep it covered for at least 15 to 20 minutes.You can add honey and nimbu to it for your taste, otherwise you can also drink it.

The yellow color is on the top of the flower, remove it and break the top pole.  Remove the stems from below!

Benefit 

High B. P
Glowing face
Far heat 
Jaundice 

Caution 

Low B. P
Conceive 
Pregnant 
Katha dosha


These patients should not be taken.  Everyone else can take.

Take hibiscus  tea only once in 1 day and after taking it for 1 month.Take hibiscus tea only once in 1 day and after taking it for 1 month.














Monday, 8 June 2020

SURYA NAMSkAR ( sun salutation )

सूर्य नमस्कार का सरल अर्थ है। "सूर्य को प्रणाम"सूर्य आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है।
योग में सूर्य नमस्कार करने से हमारा पिंगला नाड़ी सक्रिय होते हैं। दाहिना नासिका पिंगला नाड़ी होता है। दाहिना नाशिका सूर्य का प्रतीक है और बाएं नासिका चंद्र का प्रतीक है?सूर्य नमस्कार अपने आप में एक पूर्ण साधना है क्योंकि इसमें आसन पाणयाम मंत्र और ध्यान की विधियां है। सूर्य नमस्कार करने से संपूर्ण शरीर का व्यायाम हो जाता है। इससे शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों को ढीला करने तथा खिंचाव लाने और आंतरिक अंगों की मालिश करने का एक अच्छा योग है सूर्य नमस्कार करने से पिंगला नाड़ी प्रभावित होती है जिससे शारीरिक व मानसिक स्रोतों पर शक्ति संतुलित हो जाती है।

सूर्य नमस्कार तीन तत्वों से बना है आकृति ,ऊजा ,लय ,सूर्य नमस्कार लयबद्ध कर्म  अभ्यास करने से इसका लाभ प्राप्त होता है।

अभ्यास काल!

सुबह सूर्योदय के समय सूर्य नमस्कार करना अच्छा होता है क्योंकि उस समय सौर ऊर्जा कि शक्ति हमारे भीतर जाती है जिससे कि विटामिन डी की कमी नहीं होती है, सूर्यास्त के समय भी कर सकते हैं। वैसे तो सूर्य नम कार पूरे दिन में कभी भी किया जा सकता है।  बेशतर् की रेट 3 से 4 घंटे खाली रहना चाहिए।

  1. प्रणामासन

विधि


आंखों को बंद रखे पंजों को एक साथ रखकर सीधे खड़े रहे। कोहनियों को धीरे धीरे मोड़ और हाथों को जोड़कर नमस्कार की मुद्रा में वक्ष के सामने ले आए। मानसिक रूप से समस्त जीवन के स्रोत सूर्य को नमन करें।

स्वसन 

स्वसन सामान्य श्वसन करें


लाभ!

यह शारीरिक स्थिति किए जाने वाले अभ्यास के लिए एकाग्र और मन को शांत अवस्था में लाता है


2.हस्त उत्तानासन

विधि

दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर उन्हें खिंचाव पैदा करें। हाथों के बीच कंधे की चौड़ाई के बराबर दूरी रखी रखे  सिर, हाथो और धड़ के ऊपरी भागा को थोडा. सा पीछे झुकाए

 भुजाओं को उठाते समय स्वसन ले।

लाभ

यह आसन पेट के सभी अंगों में खिंचाव पैदा करता है  पाचन में सुधार लाता है। इसमें हाथों और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।यह मेरूदणड की तंत्रिका ओं को शक्ति प्रदान करता है। फेफड़ों को फैलाता है और बढ़े हुए वजन को कम करता है।

3.पादहस्तासन

विधि

सामने की ओर झुकते जाए जब तक की उंगलियां तो हथेलियां पंजों के बगल में जमीन का स्पर्श ना करने 

सामने की ओर झुकते समय श्वास को छोड़े।


लाभ

यह आसन पेट  के रोगों का निरोध के लिए उपयोगी है। इससे पेट पर पर बढ़ा हुआ भार घटता है। पाचन में सुधार होता है और कब्ज दूर होता है। इससे रक्त संचार में सुधार होता है। मेरूदण्ड में लचीलापन आता है मेरूदण्ड की  तंत्रिका को शक्ति  प्राप्त होती है।

सावघानी

जिन्हें पीठ की समस्या हो वह पूरी तरह से आगे ना झुके मेरुदंड को सीधा रखते हुए नितंबों से उतना ही झुके की पीठ पैरों के साथ 90 अंश का कोण बना लें अथवा जितना आराम से हो सके उतना चुके।

4 .अश्व संचालनासन


विधि


हथेलियों को पंजों के बगल में जमीन पर सीधा रखें।दाहिने पैर को जितना संभव हो, पीछे की ओर ले जाएं। साथ ही बाएं पंजे को जमीन पर उसे स्थिति में रखते हुए बाएं घुटने को मोड़े।हाथों को सीधा रखें। अंतिम स्थिति में शरीर का भार दोनों हाथों बाएं पैर ,दाहिने घुटने और दाहिने पैर की उंगलियों पर रहना चाहिए।सिर को पीछे की ओर झुकाए पीठ को धनुष आकार बनाएं तथा आंतरिक सृष्टि को ऊपर की और eyebrow ke center पर केंद्रित करें।

दाहिना पैर पीछे ले जाते समय श्वास लें।


लाभ


यह आसन अमाशय के अंगों की मालिश करता है और उनकी कार्य क्षमता को बढ़ाता है। पैरों की पेशियों को मजबूत बनाता है और तंत्रिका तंत्र में संतुलन लाता है।


5.पर्वतासन

विधि

बाय पंजे को पीछे ले जाकर दाहिनी पंजे के बगल में रखें।
साथ ही नितंबों को उठाए और सिर को हाथों के बीच ले आए जिससे पीठ और पैर एक त्रिभुज की दो भुजाओं के समान दिखाई दे। अंतिम स्थिति में पैर और हाथ सीधे रहे एडियो को जमीन पर तथा सिर को घुटने की ओर लाने का प्रयास करें 

बाय पैरों को पीछे ले जाते समय स्वास्थ्य को छोड़ें।

लाभ

यह आसन हाथों और पैरों के स्नायु एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। मेरूदण्ड  के स्नायु को मजबूत  करता है और विशेष रूप से मेरूदण्ड  के ऊपरी भाग में जो कंधा के मध्य स्थित है।उसमे  रक्त संचार को  बढ़ाता है

6.अष्टांग नमस्कारस

विधि

घुटनों , छाती और chin को नीचे लाकर जमीन का स्पर्श करायें। अंतिम स्थिति में केवल पैरों की उंगलियां ,घुटने ,हाथ और chin जमीन का  touch करेगी।घुटने , chest, chin एक ही साथ जमीन पर रखे   यदि यह संभव ना हो तो सबसे पहले घुटने को जमीन पर रखें। उसके बाद chest को जमीन पर रखें। फिर chin को जमीन पर रखे।नितंब (hip).,thighs  और पेट जमीन से थोड़ा ऊपर उठे रहे।

इस स्थिति में सांस को बाहर रोके स्वसन ना करें।

लाभ

यह आसन पैरों और हाथों की पेशियों को मजबूत बनाता है और और चेस्ट को विकास करता है। इससे कंधों के मध्य स्थित मेरु प्रदेश का व्यायाम होता है।

7.भुजंगासन

विधि

hips और प्रदेश के को नीचे लाकर जमीन का स्पर्श कराएं।कोहनियॉ को सीधा करते हुए पीठ को धनुषाकार बनाये और वक्ष  को सॉप की तरह आगे की ओर ले आये  सिर को पीछे की ओर झुकाया दृष्टि ऊपर की आेर भूमध्य पर केंद्रित करें।thigh ,  जमीन पर ही रहे दोनों हाथों के सहारे को धडं ऊपर उठाये रखें। जब तक मेरुदंड अधिक लचीला ना हो जाए। हाथ थोडी मुड़ी हुई रहेगी।

धड़ को उठाते और पीठ को धनुष आकार बनाते समय श्वास ले।

लाभ

यह आसन पेट में रक्त संचार में सुधार लाकर और मेरुदंड की तंत्रिकाओ को शक्ति प्रदान कर मेरूदण्ड  को लचीला बनाए रखता है। यह जननांगों को मजबूत करता ,पाचन क्रिया को उद्दीप्त करता कब्ज को दूर करता है। यह यकृत को भी शक्ति प्रदान करता, गूदे एवं एड्रिनल ग्रंथि की मालिश करता है।

8.पर्वतासन

विधि

यह पांचवी की पुनरावृति है भुजंगासन से पर्वतासन में आ जाए। हाथ और पंजे स्थिति 7 के ही स्थान पर रहे नितंबों को ऊपर उठाएं। ऐडियो को जमीन पर ले आये

   नितंबों को ऊपर उठाते समय श्वास छोड़े।

9.अश्व संचालनासन

विधि

यह स्थिति 4 के समान ही हथेलियों को जमीन पर सपाट रखें। बाएं पैर को मोड़े और बाएं पंजों को आगे लाकर दोनों हाथों के पीछे रखें। साथ ही दाहिने घुटने को नीचे लाएं जिससे वह जमीन का स्पश करने लगे और pelvic  को आगे की ओर बढ़ाएं।सिर को पीछे की ओर झुकाये । पीठ को धनुष आकार बनाएं और दृष्टि को भूमध्य पर केंद्रित करें।

इस आसन में आते समय स्वास ले।


10.पादहस्तासन



यह आसन स्थिति 3 की पुनरावृति है।  पंजे को आगे बाय पंजे के बगल में ले आए। दोनों घुटने को सीधा करे। बिना जोर लगाए ललाट को जितना संभव हो घुटने के पास ले आए।

इस आसन में आने के लिए शारीरिक गति करते समय स्वास् ले।


11.हस्त उत्तानासन

विधि 

यह आसन स्थिति दो की पुनरावृति है।धड़ को ऊपर उठाएं और हाथों को सिर के ऊपर ताने हाथों के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर दूरी रखें। फिर हाथ और धड़ के ऊपरी भाग को थोड़ा पीछे की ओर झुका है।

शरीर को सीधा करते समय श्वास लें।


12.प्रणामासन

विधि


यह अंतिम चरण है और स्थिति 1 के समान है। दोनों हाथों को जोड़कर वक्ष के सामने ले आए।

अंतिम स्थिति में आते समय श्वास छोड़े

सीमाएं 

ज्वर ,अधिक सूजन, फोड़ा लाल चटके हो जाने पर सूर्यनमस्कार तुरंत बंद कर देना चाहिए। 
 शरीर में अधिक विषैले पदार्थ होने से यह लक्षण प्रकट होते हैं। इन विषैले तत्वों के निकल जाने पर पुनः प्रयास प्रारंभ करें।जिन्हें उच्च रक्तचाप, हृदय, धमनी या दिल का दौरा पड़ा हो क्योंकि इससे दुर्बल हृदय या रुधिर वाहिका तंत्र अधिक उतेजित  अथवा क्षतिग्रस्त हो सकते है 
पीठ की समस्या वालों को यह अभ्यास किसी योग गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।मासिक धर्म आरंभ होते समय इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।मासिक धर्म के अंत में पुनः अभ्यास को प्रारंभ किया जा सकता है। गर्भधान के बाद 12 सप्ताह के आरंभ तक थोड़ी सावधानी के साथ अभ्यास किया जा सकता है। प्रसव (delivery ) के 40 दिनों के बाद यहअभ्यास  पुनः प्रारंभ किया जा सकता है जिससे कि गर्भाशय की पेशियों की पुन शक्ति प्राप्त हो सके।

लाभ



सूर्य नमस्कार के संपूर्ण अभ्यास से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यह रक्त परिसंचरण श्वसन और पाचन प्रणाली सहित समस्त शरीर संस्थानों को उद्दीप्त और संतुलित करता है। पीयूष ग्रंथि और हाइपोथैलेमिक पर इसका जो प्रभाव होता है, उससे पीयूष ग्रंथि का अपक्षय और कैलसीकरण रुक जाता है। बच्चो   मे बाल्यावस्था और किशोरावस्था के बीच संधि काल होता है। उसमें संतुलन लाता है। सूर्य नमस्कार की शारीरिक गति के साथ स्वास को जोड़ने से अभ्यासी को प्रतिदिन कम से कम कुछ मिनटों के लिए सही अधिक से अधिक गहरेंऔर लयबद्ध  श्वसन  का अवसर प्राप्त हो जाता है।यह  फेफड़ों में कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन कर उसमें ताजी  ऑक्सीजन मिलता  है जिससे मस्तिष्क को ताजा ऑकसिजन जन मिलता है। संक्षेप में सजगता में वृद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार एक आदर्श प्रख्यात है।






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English  Translation 





Surya Namaskar has a simple meaning."Greeting the Sun" The Sun is a symbol of spiritual consciousness.
By doing Surya Namaskar in Yoga our Pingala Nadi activates.The right nostril is the pingala pulse.  The right nostril is the symbol of the sun and the left nostril is the symbol of the moon?Surya Namaskar is a complete practice in itself as it has the Asana Panayam mantra and the methods of meditation.  Performing Surya Namaskar exercises the entire body.  This is a good yoga for loosening and stretching the joints and muscles of the body and massaging the internal organs.
By doing Surya Namaskar, the Pingala pulse is affected, which balances the strength on physical and mental sources.

Surya Namaskar is made up of three elements Its benefits by practicing in shape, energy, rhythm, Surya Namaskar It benefits from practicing.

Practice time


Surya Namaskar at sunrise in the morning is good because at that time the power of solar energy goes inside us so that there is no deficiency of vitamin D, you can do it at sunset also.  By the way, Surya Nam Kar can be done at any time throughout the day.Blessing rate should be empty for 3 to 4 hours.

1. Parnamasa



METhOD


Keep the eyes closed and keep the claws together and stand up straight.Slowly bend the elbows and join hands in front of the chest in a salutary pose.  Mentally bow to the Sun, the source of all life.

Make breathing normal.

Benefit!


It concentrates for the practice of physical condition and brings the mind to a calm state


2. Hasta Uttanasana

Raise both hands above the head and cause them to stretch.  Keep the distance between the hands equal to shoulder width, the head, hands and upper part of the torso slightly.  Lean back

Take breath while raising arms.



Benefit

This asana creates a stretch in all the abdominal organs.Improves digestion.  It exercises the muscles of the hands and shoulders.It provides strength to the nerves of the spinal cord.  Stretches the lungs and reduces the increased weight.

3.Padhastasan

METHOD

Leaning towards the front until the fingers are so that the palms do not touch the ground next to the toes.Try to touch the frontal with the knee.  Do not stress too much, keep the knee straight.


Exhale while bending towards the front.

Benefit

This asana is useful for prevention of stomach diseases.  This reduces the increased weight on the stomach.  Improves digestion and relieves constipation.  This improves blood circulation.  There is flexibility in the spinal cord, the nerve of the spinal cord gets strength.


COUTION

Those who have back problems should not bend forward completely, keeping the spine straight, bend with the buttocks as much as the back, make an angle of 90 degrees with the legs or be as relaxed as possible.


5.Horse conduction




METHOD

Place the palms upright on the ground next to the claw. Move the right leg as far back as possible.  Move the right leg as far back as possible.  At the same time bend the left knee, keeping the left claw in position on the ground.
Keep your hands straight.  In the final position, the weight of the body should remain on both the left leg, right knee and right toes.Make the bow shape by tilting the head backwards and focus the inner creation on the top 

Inhale while moving right leg back.

Benefit

This asana massages the gastric organs and increases their work capacity.  Strengthens the muscles of the feet and brings balance in the nervous system.

5.Mountains



METHOD

Move the left claw backward and place it next to the right claw.Also, raise the buttocks and bring the head between the hands so that the back and legs look like two arms of a triangle.  In the last position, keep the feet and arms straight, on the ground and bring the head towards the knees.

Leave the health while moving the left foot back

Benefit

This asana provides peace to the muscles and muscles of the hands and feet.  Strengthens the spinal cord and increases blood circulation, especially in the upper part of the spinal cord.

6.Ashtanga Namaskar.




METHOD

Bring the knees, chest and chin down and touch the ground.  In the final position only the toes, knees, hands and chin will touch the ground.Put the knee, chest, chin on the ground simultaneously. If this is not possible, then first of all keep the knee on the ground.  After that keep the chest on the ground.  Then place the chin on the ground.The buttock thighs and the abdomen remained slightly elevated from the ground.

In this situation, do not breathe your breath out.

Benefit

This asana strengthens the muscles of the feet and hands and makes the chest grow.This causes exercise of the meru pradesh situated between the shoulders.

7.Bhujangasana.


METHOD

Bring the hips and the area down, touch the ground. While straightening the elbows, make the back arched and bring the chest forward like a soap, tilting the head backwards.Focus the vision upwards to the Mediterranean. Thighs, keep the torso up with the help of both hands on the ground.  Until the spinal cord becomes more flexible.  The hand will be slightly bent.


Inhale while raising the torso and making the bow shape the back.


Benefit


This asana keeps the spinal cord flexible by improving blood circulation in the stomach and providing strength to the nerves of the spinal cord.  It strengthens the genitals, stimulates digestion.Relieves constipation.  It also provides strength to the liver, massaging the pulp and adrenal gland.

8.Mountains

METHOD

This is the repetition of the fifth one to come from Bhujangasana to the mountain.  Lift the buttocks, which are at the same position as the hands and claws, in position 7.  Bring audio to the ground.

Exhale while raising the buttocks.

9.Horse conduction.

METHOD

In the same manner as in position 4, keep the palms flat on the ground.  Fold the left leg and bring the left toes forward and keep it behind both hands.  Also bring the right knee down so that it starts to spush the ground and extend the pelvic forwardTilt the head backwards.  Make the back a bow shape and focus the vision on the Mediterranean..

While coming to this posture, take breath.


10.Padhastasan.

METHOD


This posture is a repetition of position 3.  Bring the claw next to the left claw.  Straighten both knees.  Without pushing too much, bring the frontal as close to the knee as possible.

To get into this posture, take a breath while doing physical movements.


11.Hasta Uttanasana

METHOD


This asana is a repetition of position two.Raise the torso up and tuck the hands over the head.Keep the distance between the hands equal to the width of the shoulders.  Then the upper part of the arm and torso is slightly tilted backwards.


Inhale while straightening the body.


12.Pranamasana

METHOD

This is the last step and is similar to position 1.  Bringing both hands in front of the chest.

Exhale while coming to the last position.


Limitations.

Suryanamaskar should be stopped immediately if fever, excess swelling, boils become reddish.These symptoms are manifested by having more toxic substances in the body.  Once these toxic substances are released, try again.Those who have had high blood pressure, heart, artery or heart attack because this can cause weak heart or blood vessel system to get more excited or damaged.Those with back problems should do this exercise only under the guidance of a yoga guru.This practice should not be done while menstruation starts.The practice can be resumed at the end of menstruation.  Up to the beginning of 12 weeks after conception can be practiced with a little caution.  This exercise can be restarted after 40 days of delivery to regain uterine muscles.

Benefit 




The complete practice of Surya Namaskar brings many benefits.  This blood circulation stimulates and balances all body institutions including the respiratory and digestive systems.  Its effect on pituitary gland and hypothalamic, it stops the weathering and calcification of pituitary gland.  In children, there is a joint period between childhood and adolescence.  It brings balance.  By combining Swas with the physical motion of Surya Namaskar, the practitioner gets the opportunity for maximum deep and rhythmic breathing for at least a few minutes per day.It expels carbon dioxide in the lungs and gets fresh oxygen in it, which gives fresh oxygen to the brain.  In short, Surya Namaskar is an ideal name for increasing alertness and good health.












Bharamri paranayam( भ्रामरी प्राणायाम।)

 भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है। भौरा इस अभ्यास को भ्रामरी  इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौरे के गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न ...