भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है। भौरा इस अभ्यास को भ्रामरी इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौरे के गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
विधि
ध्यान के किसी सुविधाजनक आसन में बैठ जाए जैसे (पद्मासन, अर्ध पद्मासन, सुखासन, सिद्धियोंनि, , सिद्धासन ा मेरूदण्ड सीधा रहे दोनों हाथ घुटने पर चिन मुद्रा या फिर जान मुद्रा में रखे ा अॉखे बंद कर मन को स्थिर करे पूरे अभ्यास के दौरान होने को हल्के से बंद करे देते की पंक्तियॉ थोडा से अलग रहना चाहिए , दॉतो को दबा कर नही रखना है ,चेहरे पर किसी भी प्रकार की तानव ना रहे ा
1.हाथों को उठाकर कोहनी को मोड ले और हाथों को कानों के निकट लाए तर्जनी या मध्यमा उंगलियों से कानों को बंद कर ले। उंगलियों को बिना अंदर घुस्साए कानों के पलों को दबाया जा सकता है। फिर नासिका से श्वास लें और भौरे की गुंजन की तरह गहरी और मंद ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियंत्रण ढंग से धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें , श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर , अखंड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मधुर हो की कपाल के अग्रभाग में उसकी प्रतिध्वनि गूंजने लगी।
अपने ध्यान को सिर के बीचो-बीच ले जाए, जहां आचा चक्र स्थित है और शरीर को एकदम स्थिर रखें। नासिका से श्वास लें और भौरे की गुंजन की तरह गहरी और मंद ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियंत्रण ढंग से धीरे-धीरे श्वास छोड़े।श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर अखंड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मधुर हो कि कपाल के अग्रभाग में उसकी प्रतिध्वनि गुजने लगे। यह एक चक्र हुआ ा सवाल को पूरी तरह छोडने के बाद फिर से श्वास भरे और पुनं करे ं।
अवधि
सामान्य रूप से 5 से 10 चक्र तक पर्याप्त है। धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 10 से 15 मिनट तक अभ्यास करें। बहुत अधिक मानसिक तनाव चिंता होने पर इसे उपचार के रूप में 30 मिनट तक भी किया जा सकता है।
अभ्यास का समय
अभ्यास के लिए सबसे अच्छा समय देर रात्रि आप उषाकाल है क्योंकि उस समय वातावरण में बता शांति बनी रहती है और मानसिक तानव से मुक्ति के लिए भ्रामरी अभ्यास किया जाता है
सीमाए
भ्रामरी प्राणायाम लेट कर कभी नहीं करना चाहिए जिन्हें कान का संक्रम हो उन्हें संक्रम से मुक्त होने के बाद ही भ्रामरी करना चाहिए।
लाभ
भ्रामरी परेशानी और मस्तिष्क के तनाव से मुक्ति दिलाता है जिससे क्रोध, चिंता और अनिद्रा भी दूर होती है और रक्तचाप में कमी आती है। यह शरीर के ऊतकों को शीघ्र स्वस्थ बनाता है। अतः शल्यक्रिया के पश्चात इस प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यह वाणी को सुधार का सशक्त बनाता है और गले के रोगों को दूर करता है।
English translation........
Bhramari is related to Bhramar which means. Bhora .This practice is called bhramari because it produces a sound similar to the bhore.
Method
Sit in a comfortable posture of meditation such as (Padmasana, Ardha Padmasana, Sukhasana, Siddhini, Siddhasana's backbone should remain straight, both hands should be kept in chin mudra or jana mudra, close the eyes and stabilize the mind during the whole exercise. Close it lightly so that the rows should remain slightly apart, do not press and keep the dust, there is no tension on the face.
1. Take the hands and take the elbow to t close the ears from the forefils or the middle-fingers brought close to the hands. The fingers can be pressed without intested ears.Then breathing with the Nasika and generating a deep and dim sound like a bribery, leave the breath slowly, while leaving breathing, the sound of Gunjan should be sweet, monolithic. Sound is so sweet that its resonance resonates in the foreground of the cranial.
Take your attention in the center of the head, where the achaya chakra is located and keep the body very stable. Inhale from the nose and exhale slowly in a controlled manner, making a deep and dull sound like the hum of the bhora.When exhaling, the sound of hum should be melodious. The sound was so sweet that the resonance of the skull began to echo. It was a cycle, after leaving the breathing completely, breathe again and do it again.
Period
5 to 10 cycles in general is sufficient. Practice for 10 to 15 minutes while gradually increasing. It can also be done for 30 minutes as a treatment if there is too much mental stress anxiety.
Practice of time
The best time for practice is late in the night, because during that time, peace prevails in the environment, and for the relief of mental tension, a misleading practice is done.
Precaution
Bhramari Pranayam should never be done lying down; those who have ear infection should be confused only after they are free from infection.
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