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Monday, 8 June 2020

SURYA NAMSkAR ( sun salutation )

सूर्य नमस्कार का सरल अर्थ है। "सूर्य को प्रणाम"सूर्य आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है।
योग में सूर्य नमस्कार करने से हमारा पिंगला नाड़ी सक्रिय होते हैं। दाहिना नासिका पिंगला नाड़ी होता है। दाहिना नाशिका सूर्य का प्रतीक है और बाएं नासिका चंद्र का प्रतीक है?सूर्य नमस्कार अपने आप में एक पूर्ण साधना है क्योंकि इसमें आसन पाणयाम मंत्र और ध्यान की विधियां है। सूर्य नमस्कार करने से संपूर्ण शरीर का व्यायाम हो जाता है। इससे शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों को ढीला करने तथा खिंचाव लाने और आंतरिक अंगों की मालिश करने का एक अच्छा योग है सूर्य नमस्कार करने से पिंगला नाड़ी प्रभावित होती है जिससे शारीरिक व मानसिक स्रोतों पर शक्ति संतुलित हो जाती है।

सूर्य नमस्कार तीन तत्वों से बना है आकृति ,ऊजा ,लय ,सूर्य नमस्कार लयबद्ध कर्म  अभ्यास करने से इसका लाभ प्राप्त होता है।

अभ्यास काल!

सुबह सूर्योदय के समय सूर्य नमस्कार करना अच्छा होता है क्योंकि उस समय सौर ऊर्जा कि शक्ति हमारे भीतर जाती है जिससे कि विटामिन डी की कमी नहीं होती है, सूर्यास्त के समय भी कर सकते हैं। वैसे तो सूर्य नम कार पूरे दिन में कभी भी किया जा सकता है।  बेशतर् की रेट 3 से 4 घंटे खाली रहना चाहिए।

  1. प्रणामासन

विधि


आंखों को बंद रखे पंजों को एक साथ रखकर सीधे खड़े रहे। कोहनियों को धीरे धीरे मोड़ और हाथों को जोड़कर नमस्कार की मुद्रा में वक्ष के सामने ले आए। मानसिक रूप से समस्त जीवन के स्रोत सूर्य को नमन करें।

स्वसन 

स्वसन सामान्य श्वसन करें


लाभ!

यह शारीरिक स्थिति किए जाने वाले अभ्यास के लिए एकाग्र और मन को शांत अवस्था में लाता है


2.हस्त उत्तानासन

विधि

दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर उन्हें खिंचाव पैदा करें। हाथों के बीच कंधे की चौड़ाई के बराबर दूरी रखी रखे  सिर, हाथो और धड़ के ऊपरी भागा को थोडा. सा पीछे झुकाए

 भुजाओं को उठाते समय स्वसन ले।

लाभ

यह आसन पेट के सभी अंगों में खिंचाव पैदा करता है  पाचन में सुधार लाता है। इसमें हाथों और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।यह मेरूदणड की तंत्रिका ओं को शक्ति प्रदान करता है। फेफड़ों को फैलाता है और बढ़े हुए वजन को कम करता है।

3.पादहस्तासन

विधि

सामने की ओर झुकते जाए जब तक की उंगलियां तो हथेलियां पंजों के बगल में जमीन का स्पर्श ना करने 

सामने की ओर झुकते समय श्वास को छोड़े।


लाभ

यह आसन पेट  के रोगों का निरोध के लिए उपयोगी है। इससे पेट पर पर बढ़ा हुआ भार घटता है। पाचन में सुधार होता है और कब्ज दूर होता है। इससे रक्त संचार में सुधार होता है। मेरूदण्ड में लचीलापन आता है मेरूदण्ड की  तंत्रिका को शक्ति  प्राप्त होती है।

सावघानी

जिन्हें पीठ की समस्या हो वह पूरी तरह से आगे ना झुके मेरुदंड को सीधा रखते हुए नितंबों से उतना ही झुके की पीठ पैरों के साथ 90 अंश का कोण बना लें अथवा जितना आराम से हो सके उतना चुके।

4 .अश्व संचालनासन


विधि


हथेलियों को पंजों के बगल में जमीन पर सीधा रखें।दाहिने पैर को जितना संभव हो, पीछे की ओर ले जाएं। साथ ही बाएं पंजे को जमीन पर उसे स्थिति में रखते हुए बाएं घुटने को मोड़े।हाथों को सीधा रखें। अंतिम स्थिति में शरीर का भार दोनों हाथों बाएं पैर ,दाहिने घुटने और दाहिने पैर की उंगलियों पर रहना चाहिए।सिर को पीछे की ओर झुकाए पीठ को धनुष आकार बनाएं तथा आंतरिक सृष्टि को ऊपर की और eyebrow ke center पर केंद्रित करें।

दाहिना पैर पीछे ले जाते समय श्वास लें।


लाभ


यह आसन अमाशय के अंगों की मालिश करता है और उनकी कार्य क्षमता को बढ़ाता है। पैरों की पेशियों को मजबूत बनाता है और तंत्रिका तंत्र में संतुलन लाता है।


5.पर्वतासन

विधि

बाय पंजे को पीछे ले जाकर दाहिनी पंजे के बगल में रखें।
साथ ही नितंबों को उठाए और सिर को हाथों के बीच ले आए जिससे पीठ और पैर एक त्रिभुज की दो भुजाओं के समान दिखाई दे। अंतिम स्थिति में पैर और हाथ सीधे रहे एडियो को जमीन पर तथा सिर को घुटने की ओर लाने का प्रयास करें 

बाय पैरों को पीछे ले जाते समय स्वास्थ्य को छोड़ें।

लाभ

यह आसन हाथों और पैरों के स्नायु एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। मेरूदण्ड  के स्नायु को मजबूत  करता है और विशेष रूप से मेरूदण्ड  के ऊपरी भाग में जो कंधा के मध्य स्थित है।उसमे  रक्त संचार को  बढ़ाता है

6.अष्टांग नमस्कारस

विधि

घुटनों , छाती और chin को नीचे लाकर जमीन का स्पर्श करायें। अंतिम स्थिति में केवल पैरों की उंगलियां ,घुटने ,हाथ और chin जमीन का  touch करेगी।घुटने , chest, chin एक ही साथ जमीन पर रखे   यदि यह संभव ना हो तो सबसे पहले घुटने को जमीन पर रखें। उसके बाद chest को जमीन पर रखें। फिर chin को जमीन पर रखे।नितंब (hip).,thighs  और पेट जमीन से थोड़ा ऊपर उठे रहे।

इस स्थिति में सांस को बाहर रोके स्वसन ना करें।

लाभ

यह आसन पैरों और हाथों की पेशियों को मजबूत बनाता है और और चेस्ट को विकास करता है। इससे कंधों के मध्य स्थित मेरु प्रदेश का व्यायाम होता है।

7.भुजंगासन

विधि

hips और प्रदेश के को नीचे लाकर जमीन का स्पर्श कराएं।कोहनियॉ को सीधा करते हुए पीठ को धनुषाकार बनाये और वक्ष  को सॉप की तरह आगे की ओर ले आये  सिर को पीछे की ओर झुकाया दृष्टि ऊपर की आेर भूमध्य पर केंद्रित करें।thigh ,  जमीन पर ही रहे दोनों हाथों के सहारे को धडं ऊपर उठाये रखें। जब तक मेरुदंड अधिक लचीला ना हो जाए। हाथ थोडी मुड़ी हुई रहेगी।

धड़ को उठाते और पीठ को धनुष आकार बनाते समय श्वास ले।

लाभ

यह आसन पेट में रक्त संचार में सुधार लाकर और मेरुदंड की तंत्रिकाओ को शक्ति प्रदान कर मेरूदण्ड  को लचीला बनाए रखता है। यह जननांगों को मजबूत करता ,पाचन क्रिया को उद्दीप्त करता कब्ज को दूर करता है। यह यकृत को भी शक्ति प्रदान करता, गूदे एवं एड्रिनल ग्रंथि की मालिश करता है।

8.पर्वतासन

विधि

यह पांचवी की पुनरावृति है भुजंगासन से पर्वतासन में आ जाए। हाथ और पंजे स्थिति 7 के ही स्थान पर रहे नितंबों को ऊपर उठाएं। ऐडियो को जमीन पर ले आये

   नितंबों को ऊपर उठाते समय श्वास छोड़े।

9.अश्व संचालनासन

विधि

यह स्थिति 4 के समान ही हथेलियों को जमीन पर सपाट रखें। बाएं पैर को मोड़े और बाएं पंजों को आगे लाकर दोनों हाथों के पीछे रखें। साथ ही दाहिने घुटने को नीचे लाएं जिससे वह जमीन का स्पश करने लगे और pelvic  को आगे की ओर बढ़ाएं।सिर को पीछे की ओर झुकाये । पीठ को धनुष आकार बनाएं और दृष्टि को भूमध्य पर केंद्रित करें।

इस आसन में आते समय स्वास ले।


10.पादहस्तासन



यह आसन स्थिति 3 की पुनरावृति है।  पंजे को आगे बाय पंजे के बगल में ले आए। दोनों घुटने को सीधा करे। बिना जोर लगाए ललाट को जितना संभव हो घुटने के पास ले आए।

इस आसन में आने के लिए शारीरिक गति करते समय स्वास् ले।


11.हस्त उत्तानासन

विधि 

यह आसन स्थिति दो की पुनरावृति है।धड़ को ऊपर उठाएं और हाथों को सिर के ऊपर ताने हाथों के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर दूरी रखें। फिर हाथ और धड़ के ऊपरी भाग को थोड़ा पीछे की ओर झुका है।

शरीर को सीधा करते समय श्वास लें।


12.प्रणामासन

विधि


यह अंतिम चरण है और स्थिति 1 के समान है। दोनों हाथों को जोड़कर वक्ष के सामने ले आए।

अंतिम स्थिति में आते समय श्वास छोड़े

सीमाएं 

ज्वर ,अधिक सूजन, फोड़ा लाल चटके हो जाने पर सूर्यनमस्कार तुरंत बंद कर देना चाहिए। 
 शरीर में अधिक विषैले पदार्थ होने से यह लक्षण प्रकट होते हैं। इन विषैले तत्वों के निकल जाने पर पुनः प्रयास प्रारंभ करें।जिन्हें उच्च रक्तचाप, हृदय, धमनी या दिल का दौरा पड़ा हो क्योंकि इससे दुर्बल हृदय या रुधिर वाहिका तंत्र अधिक उतेजित  अथवा क्षतिग्रस्त हो सकते है 
पीठ की समस्या वालों को यह अभ्यास किसी योग गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।मासिक धर्म आरंभ होते समय इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।मासिक धर्म के अंत में पुनः अभ्यास को प्रारंभ किया जा सकता है। गर्भधान के बाद 12 सप्ताह के आरंभ तक थोड़ी सावधानी के साथ अभ्यास किया जा सकता है। प्रसव (delivery ) के 40 दिनों के बाद यहअभ्यास  पुनः प्रारंभ किया जा सकता है जिससे कि गर्भाशय की पेशियों की पुन शक्ति प्राप्त हो सके।

लाभ



सूर्य नमस्कार के संपूर्ण अभ्यास से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यह रक्त परिसंचरण श्वसन और पाचन प्रणाली सहित समस्त शरीर संस्थानों को उद्दीप्त और संतुलित करता है। पीयूष ग्रंथि और हाइपोथैलेमिक पर इसका जो प्रभाव होता है, उससे पीयूष ग्रंथि का अपक्षय और कैलसीकरण रुक जाता है। बच्चो   मे बाल्यावस्था और किशोरावस्था के बीच संधि काल होता है। उसमें संतुलन लाता है। सूर्य नमस्कार की शारीरिक गति के साथ स्वास को जोड़ने से अभ्यासी को प्रतिदिन कम से कम कुछ मिनटों के लिए सही अधिक से अधिक गहरेंऔर लयबद्ध  श्वसन  का अवसर प्राप्त हो जाता है।यह  फेफड़ों में कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन कर उसमें ताजी  ऑक्सीजन मिलता  है जिससे मस्तिष्क को ताजा ऑकसिजन जन मिलता है। संक्षेप में सजगता में वृद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार एक आदर्श प्रख्यात है।






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English  Translation 





Surya Namaskar has a simple meaning."Greeting the Sun" The Sun is a symbol of spiritual consciousness.
By doing Surya Namaskar in Yoga our Pingala Nadi activates.The right nostril is the pingala pulse.  The right nostril is the symbol of the sun and the left nostril is the symbol of the moon?Surya Namaskar is a complete practice in itself as it has the Asana Panayam mantra and the methods of meditation.  Performing Surya Namaskar exercises the entire body.  This is a good yoga for loosening and stretching the joints and muscles of the body and massaging the internal organs.
By doing Surya Namaskar, the Pingala pulse is affected, which balances the strength on physical and mental sources.

Surya Namaskar is made up of three elements Its benefits by practicing in shape, energy, rhythm, Surya Namaskar It benefits from practicing.

Practice time


Surya Namaskar at sunrise in the morning is good because at that time the power of solar energy goes inside us so that there is no deficiency of vitamin D, you can do it at sunset also.  By the way, Surya Nam Kar can be done at any time throughout the day.Blessing rate should be empty for 3 to 4 hours.

1. Parnamasa



METhOD


Keep the eyes closed and keep the claws together and stand up straight.Slowly bend the elbows and join hands in front of the chest in a salutary pose.  Mentally bow to the Sun, the source of all life.

Make breathing normal.

Benefit!


It concentrates for the practice of physical condition and brings the mind to a calm state


2. Hasta Uttanasana

Raise both hands above the head and cause them to stretch.  Keep the distance between the hands equal to shoulder width, the head, hands and upper part of the torso slightly.  Lean back

Take breath while raising arms.



Benefit

This asana creates a stretch in all the abdominal organs.Improves digestion.  It exercises the muscles of the hands and shoulders.It provides strength to the nerves of the spinal cord.  Stretches the lungs and reduces the increased weight.

3.Padhastasan

METHOD

Leaning towards the front until the fingers are so that the palms do not touch the ground next to the toes.Try to touch the frontal with the knee.  Do not stress too much, keep the knee straight.


Exhale while bending towards the front.

Benefit

This asana is useful for prevention of stomach diseases.  This reduces the increased weight on the stomach.  Improves digestion and relieves constipation.  This improves blood circulation.  There is flexibility in the spinal cord, the nerve of the spinal cord gets strength.


COUTION

Those who have back problems should not bend forward completely, keeping the spine straight, bend with the buttocks as much as the back, make an angle of 90 degrees with the legs or be as relaxed as possible.


5.Horse conduction




METHOD

Place the palms upright on the ground next to the claw. Move the right leg as far back as possible.  Move the right leg as far back as possible.  At the same time bend the left knee, keeping the left claw in position on the ground.
Keep your hands straight.  In the final position, the weight of the body should remain on both the left leg, right knee and right toes.Make the bow shape by tilting the head backwards and focus the inner creation on the top 

Inhale while moving right leg back.

Benefit

This asana massages the gastric organs and increases their work capacity.  Strengthens the muscles of the feet and brings balance in the nervous system.

5.Mountains



METHOD

Move the left claw backward and place it next to the right claw.Also, raise the buttocks and bring the head between the hands so that the back and legs look like two arms of a triangle.  In the last position, keep the feet and arms straight, on the ground and bring the head towards the knees.

Leave the health while moving the left foot back

Benefit

This asana provides peace to the muscles and muscles of the hands and feet.  Strengthens the spinal cord and increases blood circulation, especially in the upper part of the spinal cord.

6.Ashtanga Namaskar.




METHOD

Bring the knees, chest and chin down and touch the ground.  In the final position only the toes, knees, hands and chin will touch the ground.Put the knee, chest, chin on the ground simultaneously. If this is not possible, then first of all keep the knee on the ground.  After that keep the chest on the ground.  Then place the chin on the ground.The buttock thighs and the abdomen remained slightly elevated from the ground.

In this situation, do not breathe your breath out.

Benefit

This asana strengthens the muscles of the feet and hands and makes the chest grow.This causes exercise of the meru pradesh situated between the shoulders.

7.Bhujangasana.


METHOD

Bring the hips and the area down, touch the ground. While straightening the elbows, make the back arched and bring the chest forward like a soap, tilting the head backwards.Focus the vision upwards to the Mediterranean. Thighs, keep the torso up with the help of both hands on the ground.  Until the spinal cord becomes more flexible.  The hand will be slightly bent.


Inhale while raising the torso and making the bow shape the back.


Benefit


This asana keeps the spinal cord flexible by improving blood circulation in the stomach and providing strength to the nerves of the spinal cord.  It strengthens the genitals, stimulates digestion.Relieves constipation.  It also provides strength to the liver, massaging the pulp and adrenal gland.

8.Mountains

METHOD

This is the repetition of the fifth one to come from Bhujangasana to the mountain.  Lift the buttocks, which are at the same position as the hands and claws, in position 7.  Bring audio to the ground.

Exhale while raising the buttocks.

9.Horse conduction.

METHOD

In the same manner as in position 4, keep the palms flat on the ground.  Fold the left leg and bring the left toes forward and keep it behind both hands.  Also bring the right knee down so that it starts to spush the ground and extend the pelvic forwardTilt the head backwards.  Make the back a bow shape and focus the vision on the Mediterranean..

While coming to this posture, take breath.


10.Padhastasan.

METHOD


This posture is a repetition of position 3.  Bring the claw next to the left claw.  Straighten both knees.  Without pushing too much, bring the frontal as close to the knee as possible.

To get into this posture, take a breath while doing physical movements.


11.Hasta Uttanasana

METHOD


This asana is a repetition of position two.Raise the torso up and tuck the hands over the head.Keep the distance between the hands equal to the width of the shoulders.  Then the upper part of the arm and torso is slightly tilted backwards.


Inhale while straightening the body.


12.Pranamasana

METHOD

This is the last step and is similar to position 1.  Bringing both hands in front of the chest.

Exhale while coming to the last position.


Limitations.

Suryanamaskar should be stopped immediately if fever, excess swelling, boils become reddish.These symptoms are manifested by having more toxic substances in the body.  Once these toxic substances are released, try again.Those who have had high blood pressure, heart, artery or heart attack because this can cause weak heart or blood vessel system to get more excited or damaged.Those with back problems should do this exercise only under the guidance of a yoga guru.This practice should not be done while menstruation starts.The practice can be resumed at the end of menstruation.  Up to the beginning of 12 weeks after conception can be practiced with a little caution.  This exercise can be restarted after 40 days of delivery to regain uterine muscles.

Benefit 




The complete practice of Surya Namaskar brings many benefits.  This blood circulation stimulates and balances all body institutions including the respiratory and digestive systems.  Its effect on pituitary gland and hypothalamic, it stops the weathering and calcification of pituitary gland.  In children, there is a joint period between childhood and adolescence.  It brings balance.  By combining Swas with the physical motion of Surya Namaskar, the practitioner gets the opportunity for maximum deep and rhythmic breathing for at least a few minutes per day.It expels carbon dioxide in the lungs and gets fresh oxygen in it, which gives fresh oxygen to the brain.  In short, Surya Namaskar is an ideal name for increasing alertness and good health.












Bharamri paranayam( भ्रामरी प्राणायाम।)

 भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है। भौरा इस अभ्यास को भ्रामरी  इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौरे के गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न ...