भस्त्रिका प्राणायाम का अर्थ है' धौकनी 'इसमें लोहार की धौकनी की तरह फेफड़े में बलपूर्वक वायु को भीतर बाहर किया जाता है। धौकनी अग्नि में वायु प्रवाह को बढ़ा कर अधिक गर्मी पैदा करती है। उसी प्रकार भस्त्रिका प्राणायाम शरीर में वायु प्रवाह में वृद्धि कर भौतिक व सुक्ष्म दोनों स्तरों पर आंतरिक ताप बढ़ा देती है। इस शारीरिक व मानसिक शांति प्राप्त होती है।
भस्त्रिका को तीन गति से किया जाता है
मंद गति - मंद गति से उन साधक को करना चाहिए जिसने अभी योगा करना आरंभ किया है या वह व्यक्ति जो 40 से 50 से ऊपर हो क्योंकि इन लोगों की फेफड़ों की क्षमता कम होती है इसलिए धीरे-धीरे मन गति से भस्त्रिका का आरंभ करना चाहिए। एक चरण 10 बार होता है। एक चरण से धीरे-धीरे बढ़ाइए जल्दी नहीं करना चाहिए।
मध्य व उच्च गति से कोई भी व्यक्ति कर सकता है पर शर्त ेकिसी तरह की बीमारी नां हो
अभ्यास विधि
1. बॉए व दॉए नासिका से
किसी भी आसन में बैठ जाएं। (पद्मासन सिद्धि, योनि आसन, सिद्धासन अर्ध पद्मासन) दोनों हाथों को चिन मुद्रा में घुटने पर रखें।मेरुदंड बिल्कुल सीधा रहे कंधे झुके नहीं रहना चाहिए। नासागर मुद्रा हाथ से बनाए और दाहिना नासिकाछिद्र को बंद करें।
बाएं नासिका से 10 बार श्वास लें और छोड़ें।फिर बाएं नासिका को बंद कर दाएं नासिका से 10 बार श्वास लें और छोड़ें यह एक चरण हुआ। इसके बाद दोनों नासिका को बंद कर अंतर कुंभक करें।।
2. दोनो नासिका से
किसी भी आसन में बैठ जाए। हाथों को चिन मुद्रा बनाए और घुटनों पर रखें। मेरुदंड सीधा रखें और दोनों नासिका से श्वास भरें और स्वास्थ छोड़ें। यह तेज गति से स्वास को भरना है और सॉस को छोड़ना है। इसे 10 बार करें। यह एक चरण हुआ।
3.विकल्प नासिका( दोनों नासिका से पर बारी-बारी)
किसी भी आसन में बैठ जाए दाएं हाथ से ना सागर मुद्रा बनाए और दाईं नासिका को बंद करें। बाएं नासिका से 20 बार तेज गति से श्वास भरें और तेज गति से स्वास् छोड़ें ज्यादा बल ना लगाए 21वीं बार में स्वास् भरेंगे और अंतः कुंभक लगाएंगे। दॉए नासिका से करना है। दोनों नासिका से करने पर एक चरण हुआ। इसे पांच चरण तक करने लेकर जाएं।
सावधानी
उच्च रक्तचाप ,चक्कर आना, मिर्गी, दौरा आना, हिर्दय रोग, हर्निया अल्सर ,नाक से खून आना इन रोगियों से ग्रस्त लोगों को भस्त्रिका नहीं करना चाहिए ा
जिन्हें फेफड़े की बीमारी जैसे दमा ब्रोंकाइटिस से पीड़ित रोगियों के लिए लाभकारी है, लेकिन वह किसी योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें।
लाभ
भस्त्रिका प्राणायाम करने से शरीर में जमे विषैल पदारथ को जला देते हैं। फेफड़े के वायु कोष में ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड की आवाजाही होती है। भस्त्रिका करने से फेफड़े में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा जाते और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से विषैल गैस निकलने से रक्त में शुद्धि आती है। रक्त में ऑक्सीजन ज्यादा जाता है जो कि रक्त पूरे शरीर में जाता जिससे बीमारियां नहीं होती है। बस्ती का करने से हमें हृदय की समस्या नहीं होगी क्योंकि हदय को अाराम पूर्वक अपना काम करेगा। उसे धक्का लगा कर काम करने की जरूरत नहीं होगी। भस करने से पेट की मांसपेशियां मजबूत होते हैं
पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए भस्त्रिका अच्छा है। दमा व फेफडे के अन्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उत्तम पाणायाम है।
नोट
अधिकतर लोग स्वसन ऊपरी करते हैं जिससे फेफड़े के अंदर वायु कोष तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है। जिस कारण रक्त में अशुधियॉ रह जाती है। शरीर के मुकाबले मस्तिष्क को 20% ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। जब ऑक्सीजन में कमी व कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है तो तनाव ,डिप्रेशन उदासीन ,चिड़चिड़ापन जैसी बीमारियां उत्पन्न होने लगती है। दमा ब्रोंकाइटिस रोग भी होने लगते हैं।
English translation.......................
Bhastrika result means 'Dhokani', like a blacksmith's blower, the air is forced out into the lungs.The blower produces more heat by increasing the air flow in the fire. Similarly, Bhastrika Pranayama increases the internal heat on both physical and internal levels by increasing the air flow in the body.This physical and mental peace is attained.
1 comment:
Very nice
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