Friday, 28 August 2020

Bharamri paranayam( भ्रामरी प्राणायाम।)

 भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है। भौरा इस अभ्यास को भ्रामरी  इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौरे के गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न की जाती है।




विधि

ध्यान के किसी सुविधाजनक आसन में बैठ जाए जैसे (पद्मासन, अर्ध  पद्मासन, सुखासन, सिद्धियोंनि, , सिद्धासन  ा मेरूदण्ड   सीधा रहे  दोनों हाथ घुटने पर चिन मुद्रा या फिर जान मुद्रा में रखे ा  अॉखे बंद कर मन को स्थिर करे  पूरे अभ्यास के दौरान होने को हल्के से बंद करे देते की पंक्तियॉ थोडा से अलग रहना चाहिए , दॉतो को दबा कर नही रखना है ,चेहरे पर किसी भी प्रकार की तानव ना रहे ा 

1.हाथों को उठाकर कोहनी को मोड ले और हाथों को कानों के निकट लाए तर्जनी या मध्यमा उंगलियों से कानों को बंद कर ले। उंगलियों को बिना अंदर घुस्साए कानों के पलों को दबाया जा सकता है। फिर नासिका से श्वास लें और भौरे की गुंजन की तरह गहरी और मंद ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियंत्रण ढंग से धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें , श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर ,  अखंड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मधुर हो की  कपाल के अग्रभाग में उसकी प्रतिध्वनि गूंजने लगी।


अपने ध्यान को सिर के बीचो-बीच ले जाए, जहां आचा चक्र स्थित है और शरीर को एकदम स्थिर रखें। नासिका से श्वास लें और भौरे की गुंजन की तरह गहरी और मंद ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियंत्रण ढंग से धीरे-धीरे श्वास छोड़े।श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर अखंड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मधुर हो कि कपाल के अग्रभाग में उसकी प्रतिध्वनि गुजने लगे। यह एक चक्र हुआ  ा सवाल को पूरी तरह छोडने के  बाद फिर से श्वास भरे और पुनं  करे ं।


अवधि

सामान्य रूप से 5 से 10 चक्र तक पर्याप्त है। धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 10 से 15 मिनट तक अभ्यास करें। बहुत अधिक मानसिक तनाव चिंता होने पर इसे उपचार के रूप में 30 मिनट तक भी किया जा सकता है।

अभ्यास का समय

अभ्यास के लिए सबसे अच्छा समय देर रात्रि आप उषाकाल है क्योंकि उस समय वातावरण  में बता शांति बनी रहती है और मानसिक तानव  से मुक्ति के लिए भ्रामरी  अभ्यास किया जाता है

सीमाए

भ्रामरी  प्राणायाम लेट कर कभी नहीं करना चाहिए जिन्हें कान का संक्रम हो उन्हें संक्रम से मुक्त होने के बाद ही भ्रामरी  करना चाहिए।

लाभ

भ्रामरी परेशानी और मस्तिष्क के तनाव से मुक्ति दिलाता है जिससे क्रोध, चिंता और अनिद्रा भी दूर होती है और रक्तचाप में कमी आती है। यह शरीर के ऊतकों को शीघ्र स्वस्थ बनाता है। अतः शल्यक्रिया के पश्चात इस प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यह वाणी को सुधार का सशक्त बनाता है और गले के रोगों को दूर करता है।


















English translation........       



Bhramari is related to Bhramar which means.  Bhora .This practice is called bhramari because it produces a sound similar to the  bhore.





Method


Sit in a comfortable posture of meditation such as (Padmasana, Ardha Padmasana, Sukhasana, Siddhini, Siddhasana's backbone should remain straight, both hands should be kept in chin mudra or jana mudra, close the eyes and stabilize the mind during the whole exercise.  Close it lightly so that the rows should remain slightly apart, do not press and keep the dust, there is no tension on the face.



1. Take the hands and take the elbow  to t close the ears from the forefils or the middle-fingers brought close to the hands. The fingers can be pressed without intested ears.Then breathing with the Nasika and generating a deep and dim sound like a bribery, leave the breath slowly, while leaving breathing, the sound of Gunjan should be sweet, monolithic. Sound is so sweet that its resonance resonates in the foreground of the cranial.

Take your attention in the center of the head, where the achaya chakra is located and keep the body very stable.  Inhale from the nose and exhale slowly in a controlled manner, making a deep and dull sound like the hum of the bhora.When exhaling, the sound of hum should be melodious.  The sound was so sweet that the resonance of the skull began to echo.  It was a cycle, after leaving the breathing completely, breathe again and do it again.


Period


5 to 10 cycles in general is sufficient.  Practice for 10 to 15 minutes while gradually increasing.  It can also be done for 30 minutes as a treatment if there is too much mental stress anxiety.



Practice of time

The best time for practice is late in the night, because during that time, peace prevails in the environment, and for the relief of mental tension, a misleading practice is done.



Precaution 

Bhramari Pranayam should never be done lying down; those who have ear infection should be confused only after they are free from infection.
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Benefit



Relieves delusional discomfort and brain tension, which also eliminates anger, anxiety and insomnia and reduces blood pressure.  It makes the body tissues healthy quickly.  Therefore, this pranayama should be practiced after surgery.  It empowers speech to improve and cures diseases of the throat.









Saturday, 8 August 2020

भस्त्रिका प्राणायाम लाभ(Bhastrika parnayama benefit)

   भस्त्रिका प्राणायाम  का अर्थ है' धौकनी 'इसमें लोहार की धौकनी की तरह फेफड़े में बलपूर्वक वायु को भीतर बाहर किया जाता है। धौकनी अग्नि में वायु प्रवाह को बढ़ा कर अधिक गर्मी पैदा करती है। उसी प्रकार भस्त्रिका प्राणायाम शरीर में वायु प्रवाह में वृद्धि कर भौतिक व  सुक्ष्म  दोनों स्तरों पर आंतरिक ताप बढ़ा देती है। इस शारीरिक व मानसिक शांति प्राप्त होती है।


भस्त्रिका को तीन गति से किया जाता है

  मंद गति -     मंद गति से उन साधक को करना चाहिए जिसने अभी योगा करना आरंभ किया है या वह व्यक्ति जो 40 से 50 से ऊपर हो क्योंकि इन लोगों की फेफड़ों की क्षमता कम   होती है इसलिए धीरे-धीरे मन गति से भस्त्रिका का आरंभ करना चाहिए। एक चरण 10 बार होता है। एक चरण से धीरे-धीरे बढ़ाइए जल्दी नहीं करना चाहिए।


मध्यम व उच्च गति  

मध्य व उच्च गति से कोई भी व्यक्ति कर सकता है पर शर्त ेकिसी तरह की बीमारी नां हो

अभ्यास विधि

1. बॉए व दॉए नासिका से

किसी भी आसन में बैठ जाएं। (पद्मासन सिद्धि, योनि आसन, सिद्धासन अर्ध पद्मासन) दोनों हाथों को चिन मुद्रा में घुटने पर रखें।मेरुदंड बिल्कुल सीधा रहे कंधे झुके नहीं रहना चाहिए। नासागर   मुद्रा हाथ से बनाए और दाहिना नासिकाछिद्र को बंद करें।


बाएं नासिका से 10 बार श्वास लें और छोड़ें।फिर बाएं नासिका को बंद कर दाएं नासिका से 10 बार श्वास लें और छोड़ें यह एक चरण हुआ। इसके बाद दोनों नासिका को बंद कर अंतर कुंभक करें।।


2. दोनो नासिका से 

किसी भी आसन में बैठ जाए। हाथों को चिन मुद्रा बनाए और घुटनों पर रखें। मेरुदंड सीधा रखें और दोनों नासिका से श्वास भरें और स्वास्थ छोड़ें। यह तेज गति से स्वास को भरना है और सॉस को छोड़ना है। इसे 10 बार करें। यह एक चरण हुआ।


3.विकल्प नासिका( दोनों नासिका से पर बारी-बारी)

किसी भी आसन में बैठ जाए दाएं हाथ से ना सागर मुद्रा बनाए और दाईं नासिका को बंद करें। बाएं नासिका से 20 बार तेज गति से श्वास भरें और तेज गति से स्वास् छोड़ें ज्यादा बल ना लगाए 21वीं बार में स्वास् भरेंगे और अंतः कुंभक लगाएंगे। दॉए नासिका से  करना है। दोनों नासिका से करने पर  एक चरण हुआ। इसे पांच चरण तक करने लेकर जाएं।

सावधानी

उच्च रक्तचाप ,चक्कर आना, मिर्गी, दौरा आना, हिर्दय रोग, हर्निया अल्सर ,नाक से खून आना इन रोगियों से ग्रस्त लोगों को भस्त्रिका नहीं करना चाहिए ा

 जिन्हें फेफड़े की बीमारी जैसे दमा ब्रोंकाइटिस से पीड़ित रोगियों के लिए लाभकारी है, लेकिन वह किसी योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें।

लाभ

भस्त्रिका प्राणायाम करने से शरीर में जमे विषैल पदारथ  को जला देते हैं। फेफड़े के वायु कोष में ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड की आवाजाही होती है। भस्त्रिका करने से फेफड़े में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा जाते और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से विषैल गैस निकलने से रक्त में शुद्धि आती है। रक्त में ऑक्सीजन ज्यादा जाता है जो कि रक्त पूरे शरीर में जाता जिससे बीमारियां नहीं होती है। बस्ती का करने से हमें हृदय की समस्या नहीं होगी क्योंकि हदय  को अाराम पूर्वक अपना काम करेगा। उसे धक्का लगा कर काम करने की जरूरत नहीं होगी। भस करने से पेट की मांसपेशियां मजबूत होते हैं

पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए भस्त्रिका अच्छा है। दमा व फेफडे के अन्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उत्तम पाणायाम है।


नोट

अधिकतर लोग स्वसन ऊपरी करते हैं जिससे फेफड़े के अंदर वायु कोष तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है। जिस कारण रक्त में अशुधियॉ रह जाती है। शरीर के मुकाबले मस्तिष्क को 20% ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। जब ऑक्सीजन में कमी व कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है तो तनाव ,डिप्रेशन  उदासीन ,चिड़चिड़ापन जैसी बीमारियां उत्पन्न होने लगती है। दमा ब्रोंकाइटिस रोग भी होने लगते हैं।

















English translation....................... 



Bhastrika result means 'Dhokani', like a blacksmith's blower, the air is forced out into the lungs.The blower produces more heat by increasing the air flow in the fire.  Similarly, Bhastrika Pranayama increases the internal heat on both physical and internal levels by increasing the air flow in the body.This physical and mental peace is attained.


Bhastrika is performed at three speeds.


Slow Speed  - Slower should be done to those seekers who have just started doing yoga or a person who is above 40 to 50 as these people have low lung capacity.Therefore, Bhastrika should be started slowly in the mind.  A phase occurs 10 times.  Accelerate slowly from one phase to the next.Therefore, Bhastrika should be started slowly in the mind.  



Medium and high speed 

Any person can do it at mid and high speed.But the condition is not any kind of disease



Practice method

1. Left and Right  nostal

Sit in any posture.  (Padmasana Siddhi, Vagina Asana, Siddhasana Ardha Padmasana) Place both hands on the knee in Chin mudra.

The backbone should not be bent at all.Make nasal posture by hand and close the right nasal cavity

Inhale and release 10 times from the left nostril.Then close the left nostril.  Inhale and release 10 times from the right nose, this is a step  .After this, close both the nostrils and do the internal hold breath.


2. Both Nastal

Sit in any posture.  Keep your hands in Chin pose and keep them on your knees.  Keep the spine straight and inhale with both nostrils and release your breath.  It is to fill the breath at a fast pace and leave the breath.  Do this 10 times.  This one phase happened.


3.Alternate nasal (alternating from both nasal.)

Sit in any posture, make no ocean posture with right hand and close right nostril.  Breath at 20 times faster than the left nostril and release breath at a faster rate. Do not exert too much force, in the 21st time, you will fill your breath and apply the inner Kumbhak.

Have to do with the nose.  There was a phase when both were done with the nose.  Take it to five steps.

Precaution 

High blood pressure, dizziness, epilepsy, seizures, heart disease, hernia ulcers, epistaxis should not be used on those who suffer from these patients.

 which is beneficial for patients suffering from lung disease such as bronchitis, but any yoga.  Do it under the guidance of the teacher.


Benefit 

By performing Bhastrika Pranayama, they burn the poisonous substance stored in the body.  There is movement of oxygen and carbon dioxide in the lungs.  By doing bhastrika, the amount of oxygen in the lungs goes up and the amount of carbon dioxide is less.

By doing bhastrika, the amount of carbon dioxide gas comes out in the body.  Oxygen goes higher.  The more oxygen is in the body, the more diseases remain in our body.

Bhastrika is good for strengthening the abdominal muscles.  Best for the people suffering from Best for people suffering from asthma and other lung diseases .


Note

Most people exhale breathing due to which oxygen does not reach the air sac inside the lungs.  Due to which there are impurities in the blood.  The brain needs 20% more oxygen than the body.  When there is a decrease in oxygen and increase in carbon dioxide, diseases like stress, depression, depression, irritability start to occur.  Asthma bronchitis disease also starts.




















Bharamri paranayam( भ्रामरी प्राणायाम।)

 भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है। भौरा इस अभ्यास को भ्रामरी  इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौरे के गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न ...